Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 749
________________ सूत्र २८८-२६० प्रातिहारिक सई आदि के २२६ पण को ६िधि चारित्राचार : आदान- निक्षेप समिति ७१७ उपकरण का प्रत्यर्पण एवं प्रत्याख्यान-३ पटिहारिअ सुई आईणं पच्चयण विही प्रातिहारिक सूई आदि के प्रत्यर्पण की विधि२८८. से आगंतारेसु वा-जाव-परियावसहेसु घा-जाव-से कि पुण २८. धर्मशाला यावत्-परिव्राजकों के आश्रम में--यावत् - तत्थोग्गहंसि एवोग्गहिय सि? आज्ञा ग्रहण कर लेने के बाद साधु और कसा करे ? जे तत्व गाहावतीण वा-जाद-कम्मकरीण वा सूई क पिप्पलए गृहस्थ-यावत्-नौकरानियों से कार्यवश सूई, कैची, कर्णवा, कण्णसोहणए वा, णहच्छेवणए वा, तं अप्पणो एगल्स शोधनक, या नख छेदनक आदि अपने स्वयं के लिए प्रातिहारिक अदुाए पडिहारियं जाइसा णो अण्णवष्णस वेज्ज बा अणुप- रूप से याचना करके लाया हो तो वह उन चीजों को परस्पर वैज्ज वा। एक दूसरे साधु को न दे अथवा न सौरे । सय करणिज्जं ति कटु से तमायाए तस्य गच्छज्जा, किन्तु स्वयं का कर्तव्य समझकर उन प्रातिहारिक उपकरणों गरिछत्ता पुष्यामेव उत्ताणए हत्ये कटु, भूमीए या ठवेत्ता, को लेकर गृहस्थ के यहाँ जाये और खुले हाथ में रखकर वा 'इमं सलु-इमं खलु ति आलोएज्जा, पो चेव गं सय भूनि पर रखकर गृहस्थ से बाहे-"म्ह तुम्हारा अमुक पदार्थ है, पाणिणा परपाणिसि पच्चप्पिणेता। यह तुम्हारा अनुक पदार्थ है।" (इसे संभाल लो, देख लो) ---आनु.२, .७, उ. १, सु. ६ परन्तु उन सूई आदि उपकरणों को साधु अपने हाथ से गृहस्थ के हाथ पर रखकर न सौपे । अविहीए सई आईणं पच्चप्पिणस्स पायच्छित सुत्ताद- अविधि स सूई आदि के प्रत्यपंग करने के प्रायश्चित्त सूत्र२८६. जे भिक्खू अविहीए सूई पचपिणइ, पच्चप्पिणतं वा २८६. जो भिक्ष सूई को अविधि से प्रत्यर्पण (वापिम सौंपरा) साइजह। करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू अविहीए पिप्पलगं पच्चप्पिणा, पच्चप्पिणत वा जो भिक्ष, कैची को अविधि से प्रत्यर्पित करता है, फरवात। साइजइ. है या करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्स्यू अविहोए नहच्छेणगं पच्चरिपणइ, पच्चप्पिणतं वा जो भिवा नख छेदनक को अविधि से प्रत्यर्षित करता है, साइजई। __ करवाता है, करने गले का अनुनोदन करता है। जे भिक्खू अविहीए कण्णसोहणगं पच्चप्पिणइ, पश्यपितं जो भिक्ष कर्णशोधनक को अविधि से प्रत्यर्पित करता है, पर साइज्जइ। करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजह मासिय परिहारद्वाणं अणुग्याइय। इसे मासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) -नि. उ. १, सु. ३५-३० आता है। णिच्छियकडे काले दवाइय न पच्चप्पिणतस्स पायच्छित निश्चित काल में दण्डादि के न लौटाने के प्रायश्चित्त सुत्ताह२६०. जे भिक्खू पाडिहारिय' दंग्यं वा-जाव-वेणसई वा जाइत्ता २६०. जो भिक्ष लौटाने योग्य दण्ड-पावत्-बांस की सूई की "तामेव रणि पच्चप्पिणिस्सामि ति" सुए पच्चप्पिणा याचना करके "आज ही लौटा दूंगा" ऐसा कहकर कल लोटाता पच्चप्पिणतं वा साइज्जइ । है, लौटवाता है, लौटाने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू पारिहारिय दंडय' वा-जाव-वेणुसुई वा जाइत्ता जो भिक्ष लौटाने योग्य दण्ड-पावत् -बांस की सूई की "सुए पच्चप्पिणिस्सामिति' तामेव रयण पच्चप्पिणइ, याचना करख ''कल लौटा दूंगा" ऐसा कहकर आज ही लौटाता पन्चप्पिणं का साइज्जह ।। है, लौटवाता है, लौटाने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू सागारिय-संतिय वंजय वा-जाव-वेगुसर वा जो भिक्ष शय्यातर के दण्ड, यावत्-बास को सूई की जाइता "तामेव रणि पच्चप्पिणिस्सामि ति" सुए पच्चप्पि- याचना करके "आज ही लौटा दूंगा" ऐसा कह कर कल लौटाता गद, पञ्चप्पिणतं वा साइज्जर । है, लोटवाता है, लौटाने वाले का अनुमोदन करता है।

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