Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 726
________________ ६६४] वरणानुयोग संकेत वचन से पात्र ग्रहण का निषेध सूत्र २३३-२२६ जे भिक्षु अय-बंधणाणि बा-जात्र-बंधणाणि वा घरेश, धरतंगो भिक्ष, लोहे के बन्धन-पावत्-अन्य भी इस प्रकार वा साइज्जई। के बन्धन वाले पाच रखता है, रखवाता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्याइयं। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान प्रापश्चित्त) -नि. उ.११, सु. १-२-४-५ आता है। संगार बयणण पडिग्गह गहण गिसेहो संकेत वचन से पात्र ग्रहण का निपंच२३४. से गं एताए एसणाए एसमाणं पासित्ता परो वदेज्जा - २.३४. पात्र एषणाओं से पार की गवेपणा करने वाले साधु को कोई गृहस्थ यहे कि"आउसंतो समणा ! एज्माहि तुमं मासेण वा, दसरातेण वा, आयुष्मान् श्रमण | तुम इस समय जाओ एक मास या पंचरातेण वा, सुते या, सुततरे षा, तो ते वयं आउसो ! दस या पांव रात के बाद अथवा कल या परसों आना, तब हम अण्णतरं पायं वासामो।" सुम्हें कोई पात्र देंगे।" एनप्पगारं णिग्योस सोच्चा निसम्म से पुष्वामेव आलोएज्जा- इस प्रकार का कथन सुनकर समझकर साधु से पहले ही वह दे"अाउसो ! ति चा, भगिणी ! ति वा, णो खतु मे कम्पति “आयुष्मन् गृहस्थ ! अथवा बहन ! मुझे इस प्रकार का एतप्पगारे संगार ययणे पडिसूणेत्तए, अभिखसि मे दाउं संकेतगूर्वक वचन स्वीकार करना नहीं कल्पता है। अगर मुझे वाणिमेव बलयाहि ।" दात्र देना चाहते हो तो अभी दे दो।" से पेव वदंत परो ववेज्जा ___साधु के इस प्रकार कहने पर भी यदि वह पहस्था यो माहे कि"आउसंतो समणा ! अणुगच्छाहि तो ते वयं अपणतरं पायं आयुष्मन् श्रमण ! अभी तुम जाओ। योड़ी देर बाद दासामो।" आना. हम तुम्हें कोई पात्र दे देंगे।" से पुवामेव आलोएज्जा ऐसा कहने पर राधु उसे पहले ही कह दे, 'आचसो ! ति बा, भइणी ! ति वा, णो खलु मे कप्पति "आयुष्मन् गृहस्थ ! अबवा बग ! मुझे इस प्रकार से एयप्पगारे संगारवयणे पविणेत्तए अभिकसि मे दाउं संकेतपूर्वक वचन स्वीकार करना नहीं कल्पता है। अगर मुझे इयाणिमेव बलयाहि ।" देना चाहते हो तो अभी दे दो।" —आ. सु. २. अ. ६. उ. १, सु. ५६६ (वास्त) अफासुय पडि गगह गहण णिसेहो. अप्रामुक पात्र-ग्रहण करने के निषेध२३५. से सेवं वर्चत परो णेत्ता घदेज्जा २३१. साधु के इस प्रकार कहने पर भी वह गृहस्थ घर के किसी सदस्थ (बहन आदि को बुलाकर) यों कहे कि"बाउसो । ति वा, भगिणी 1 ति बा, आहरेतं पायं समणस्स "आयुष्मन् भाई या बहन ! यह पात्र लाओ, हम उसे श्रमण बासामो अवियाई वयं पच्छा बि अपणो सयढाए पाणाई को देगे। हम तो अपने निजी प्रयोजन के लिए बाद में भी प्राणी -जाव-सत्ताई समारम्भ-जाव-तेरसामो। -यावत्-सलों का समारम्भ करके और उद्देश्य करके - यावत् - अन्य पात्र बनबा लेंगे। एतप्पगार निधोसं सोना निसम्म तयाम्पगारं पायं अफासुर्य इस प्रकार का कथन सुनकर समझकर उस प्रकार के पात्र जाय-पो पडिगाहेज्जा। को अवासुकै जानकर-यावत-ग्रहण न करे । -आ. सु. २, अ. ६, उ. १, ९.५६६ (ग) परिकम्मकय पडिग्गह गण-गिसेहो परिकर्मकृत पाहण का निषेध२३६. से गं परो णेत्ता वएज्जा २३६. कदाचित् कोई गृहस्वामी घर के किसी व्यक्ति से यों कहे१ तीसरा और छठा सूत्र "परिभुजइ" के हैं अतः ये दो सूत्र अधिक होने पर छह सूत्र हो जाते हैं ।

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