Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 739
________________ सूच २६५-२६५ पात्र के लिए निवास करने के प्रायश्चित्त सूत्र चारित्राचार : एषणा समिति [७.. जे भिक्खू पडिग्गहातो ओसहि-बीयाई नाहर, नीहरावेद, जो भिज, पात्र से औषधि अर्थात् गेहूँ आदि धान्य और नीहरियं आहट्ट देज्जमागं पडिग्गाहेर, पडिगाहेंतं वा जीरा बीज आदि को निकालता है, निकलवाता है, निकालकर साइज्जह। देते हुए को लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिषय पडिग्गहातो तसपाणजाई नोहरह, नीहरावेद, जो भिक्ष पात्र से त्रस प्राणियों को निकालता है किन नोहरियं आहट्ट बेज्जमाएं पडिग्गाहेड, पडिग्गाहेंत या बाता है, निकालकर देते हुए को लेता है, लिवाता है, लेने वाले साइजइ। का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारटागं घाइये। उसे उबातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १४, सु. ३५-४० आता है। पडिग्गहणीसाए वसमाणस्स पायच्छित सुत्ताई पात्र के लिए निवास करमे के प्रायश्चित्त सूत्र२६६. जे मिक्सू पांडग्गणीसाए उबड बसइ, बसंत वा २६६. जो भिक्ष, पात्र के लिए ऋतुबद्ध काल (सर्दी या गर्मी) में साइजह। रहता है, रहवाता है, रहने वाले का अनुनोदन करता है। जे मिक्खू पडिग्गहणीसाए वासावासं बसह, वसंतं वा जो भिक्ष पात्र के लिए वर्षावास में रहता है, रहवाता है, साइजह। रहने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजह चाउम्भासियं परिहारदाण उग्धाइयं । उने उद्घातिक चातुर्मालिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) बाता -नि.उ.१४, सु. ४४-४५ है। ओभासिय-जायणाए पायच्छित्त सुत्ताई मांग-मांगकर याचना करने के प्रायश्चित्त सूत्र२६७. जे मिक्खू गायगं वा, अणायगं था, उवासन या, अगुवासगं २६७. जो भिक्षु स्वजन से, परिजन से, उपासक से, अनुपासक वा गामंतरंसि वा, गामपहंतरंसि या पमिगह ओमासिय से ग्राम में या ग्रामपथ में पात्र मांग-मांगकर याचना करता है, ओमातिय जायह, जायंतं वा साइज्जह । करवाता है, याचना करने वाले का अनुमोदन करता है । जे भिकल्लू णायग वा, अणायगं वा, उवासन था, अणुवासगं जो भिक्ष स्वजन को, परिजन को, उपासक को, अनुपासक बा परिसामनाओ उहवेता पडिगहं सोमासिम ओभासिय को परिषद में से उअकर (उससे) मांग-मांगकर पात्र की याचना जापा, जायंतं वा साइज्जद । करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजह घाउम्मासिय परिहारहाणं उग्घाइयं । उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १४, सु. ४२-४३ आता है। णियगादि-गवेसिय पडिगह धरणस्स पायच्छित्त सुत्ताई- निजगादि गवेषित पात्र रखने के प्रायश्चित्त सूत्र - २६८. मे मिक्स नियगावेसियं पडिगह परो धरत वा साइजह। २६८. जो भिक्ष निजक-गवेषित (अपने सगे सम्बन्धी के द्वारा दिलाये गये) पात्र को धारण करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। से भिम पर-गदेसियं पडिग्गहं घरेइ धरत का साइज्वइ । जो भिक्ष पर-गवेषित (सामान्य गृहस्थ द्वारा दिलाये गये) पात्र को धारण करता है, करवाता है या करने वाले का अनु. मोवन करता है। भिप पर-गवेसियं परिगह घरेह घरत वा सान्जा । जो भिक्ष. वर-गवेषित (प्राभ-प्रधान पुरुष द्वारा दिलाये गये) पात्र को धारण करता है, करवाता है या करने वाले का मत मोदत करता है। मे भिक्त पल-गवेसिपं पबिगहुं धरेइ घरत या सागर । जो भिक्ष बल-गवेषित (बलवान्-माक्ति सम्पन्न पुरुष द्वारा दिलाये गये) पात्र को धारण करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।

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