Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 738
________________ ७०६] परणानुयोग पात्र सन्धान-बन्धन के प्रायश्चित्त सूत्र सूत्र २६४-६५५ पाय संघाण-बंधण पायच्छिस सुत्ताई पात्र सन्धान-बन्धन के प्रायश्चित्त सूत्र-- २६४. जे मिक्स पायस्स एपकं तुड़ियं तइ ततं वा साइजह । २६४. जो भिक्षु पात्र के एक 'गली देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। विषयू पा लियापक सतं या जो भिक्षु पात्र के तीन थेपली से आधक देता है, दिलगता साइज्जा। है, देने वाले का अनुमोदन करता है। (जे भिक्खू पार्य अविहीए नई तात वा साइजद।) (जो भिक्षु पात्र के अविधि से थेगसी देता है, दिलवाता है, देने वाले का अनुमोदन करता है।) में भिमसू पायं अविहीए बंधइ. बंधतं वा साइजह । __जो भिक्षु पात्र को अविधि से बांधता है, बँधवाता है या बाँधने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू पायं एगेण बंधेण बंधन, बघत वा साइजा। जो भिक्षु पात्र को एक बन्धन से बांधता है, बंधवाता है, या बांधने वाले का अनुमोदन करता है । जे भिक्खू पायं पर तिण्हं बंधागं बंधइ, बंधतं या साइजद। जो भिक्षु पात्र के तीन से अधिक बन्धन बाँधता है, बंधाता है या बांधने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू बइरेगधणं पायं दिवढाओ मासाओ परेण घरेड, जो भिक्षु डेढ़ मास के बाद अतिरिक्त (अधिक) बन्धन वाले घरेसं या साइज्मा। पात्र को रखता है, रखवाता है, रखने वाले का अनुमोदन करता है। सं सेवमाणे आवस्जद मासिय परिहारद्वाणं अणुग्धाइय। उसे अनुद्घातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता - --नि.उ.१.. ४१-४६ है। पावेषणा सम्बन्धी अन्य प्रायश्चित्त-१० पडिग्गहाओ तसपाणाईणं णिहरणस्स पायच्छित्त सुताई- पात्र से त्रसप्राणी आदि निकालने के प्रायश्चित्त सूत्र२६५. जे मिक्खू पडिग्गहातो पुरविकार्य नीहा नोहराबेइ, नीह- २६५ जो भिक्ष पात्र से (सचित्त) पृथ्वीफाय को निकालता है, रियं पाहट्ट वेजमाणं पडिग्गाहे पडिग्यात वा निकलवाता है, निकालकर देते हुए को लेता है. लिचाता है, सेने साइज्जइ। वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्खू पडिग्गहातो आपकायं नोहरह, नौहराबेर, जो निक्ष पात्र से (सचिस) अम्काय को निकालता है, नोहरियं माहटु बेजमाणं पशिग्गाहेइ, पजिग्गाहेंतं वा निकल जाता है, निकाल कर देते हुए को लेना है, लिवाता है, साइजन । लेने वाले का अनुमोदन करता है। से मिक्खू पडिगहातो तेउबकायं नीहरइ, मोहर वेइ, नीहरियं जो भिक्ष, (मिट्टी के) पात्र से (सचित्त) अग्निकाय को आहट्ट देज्जमाणं पविगाहेइ, पविगाहेंतं वा साइजह। निकालता है, निकलवाता है. निकाल कर देते हुए को लेता है, लिवाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्षु परिगहाओ संवाणि वा मूलाणि वा, पत्ताणि वा. जो भिक्ष पात्र से (सचित्त) कन्द, मूल, पत्र, पृष्प, फल, पुष्पाणि दा, पलाणि वा, नीहराइ, नोहरावह, नीहरियं निकालता है, निकलवाता है, निकालकर देते हुए को लेता है। माह वेज्जमाणं पडिग्गाहेइ-पडिम्गाहेंतं वा साइजह। लिवाता है, लेने वाले का अनुनोदन करता है।

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