Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 724
________________ ६९२) धरणानुयोग श्रमणादि को गणना करके बनाया गया पात्र लेने का निषेध माया से पाये जानेमा अलि पहिया बहवे साहसिया समुद्दिस पाना-द सत्ताईसमारम्भ समुहस्साको पडिगाना | से भिक्खू या. भिक्खुणी या से वजं पुण पाये जाणंजा -- असि पहिया एवं साहमण समृदिपागाई जाय सत्ता समारम्भ समुद्दिस्स-जात्र णो परिगहिज्जा । से मिलू वा मिनी वा से ज्जं पुन पार्थ जाणेअसि पडियार बह नाहम्मिणी समुद्दिस्स पाणाईजाद सप्लाई समान्य समुद्राची परिगाना | - आ. सु. २, अ. ६, उ. १, सु. ५६० (क) समणाइ पणिय निम्मिच पायस्स णिसेहो - २२९. सेक्सूचो का से ज्जं पुण पाये जाणे या, जाणेज्जाये समण-माण अतिहि किविण वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स जाब- आह एद । संहत्यारं पारित या अतिवाद गोडिया | ...., J. 1. 5. XEO (5) अद्ध जोयणमेराए पर पायपडियाए गमण णिसेहो - भिक्षु, या भिक्षुणी पात्र के सम्बन्ध में यह जाने ने अपने लिए नहीं बनाया है किन्तु बनेका लिये प्राणी - पावत् सत्त्रों का समारम्भ करके -- यावत् ग्रहण व करें। वा साइज्जइ । जे भिक्खू पर अजयमेराओ सायंसि पायं अभि अहा पापडिया साहा भिक्षु, या भिणी पात्र के सम्बन्ध में यह जाने कि दाता ने अपने लिये नहीं बनाया है किन्तु एक साथी के लिये प्राणी यावत् सत्वों का समारम्भ करके बनाया है। - यावत्-ग्रहण न करें । - - यावत् ग्रहण न करे । २२०-६१२ भिक्षु, या भिक्षु iters के सम्बन्ध में यह जाने कि दाता ने अपने लिये नही बनाया है किन्तु अनेक साथमिक साध्वियों के लिये प्राणी - यावत् - सत्वों का समारम्भ करके बनाया है - कि दाता धुओं के बनाया है। श्रमणादि की गणना करके बनाया गया पात्र लेने का निषेध - २२६. या पात्र के सम्बन्ध में यह जाने कि भिक्षु भिक्षुणी अनेक श्रमण-ब्राह्मण अतिथि कृपण भिखारियों को गिन-गिन कर उनके उद्देश्य से बनाया है- यावत्-अन्य स्थान से यहाँ लाया है। इस प्रकार का पाथ अन्य पुरुष को दिया हुआ हो या न दिया हुआ हो- यावत् ग्रहण न करे । आधे योजन की मर्यादा से आगे रात्र के लिए जाने का निषेध २०. सेवा परं बोपगमेरा पापड २१० मि मा भियोजन के उपरान्त पाने के लिए जाने का विचार भी न करें । एगो अभिसंधारेज्जा गमणाए । - आ. सु. २, अ. ६, उ. १, सु. ५५६ पापडिया अजोयणमेरा नंदगस्स पायसि गुताई पात्र हेतु अयोजन की मर्यादा भंग करने के प्रायदिवस सूत्र २१-२२१. आधे योजन से आगे पान के लिए जाता है. भेजता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है। जो मि विकट परिस्थिति में भी का योजन से अधिक दूर से पात्र को सामने लाकर देते हुए को लेता है, लिवाता है। या लेने वाले का अनुमोदन करता है। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चि) आता है। - तंवणाने भाव दिवं परिहारद्वागं अगुवाइ - नि. उ. ११, सु. ७05 महद्वणमोल्लागं परिग्रहाणं गहरा पिसेहो २३२. से भिक्खू या, भिक्खुणी या से जाइ पुण पाया जाणेज्जा २३२. गृहस्य के घर में पात्र के लिए प्रविष्ट भिक्ष, या भिक्षुणी विश्ववाई महणमा जहा तं यह जाने कि नाना प्रकार के महामूल्यवान पात्र हैं, जैसे कि बहुमूल्य वाले पात्र ग्रहण करने का निषेध

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