Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 734
________________ ७.२ परणानुयोग पात्र के विवणं आदि करने का निषेध सूत्र २५४-२५६ नो पर स्वसंकभिता एवं वदेज्जा-"आउसतो समगा न किसी दुमरे भिक्षु को इस प्रकार कहें "हे आयुष्मन यमिकखति एवं पायं चारित्तए वा, परिहरिसए वा ?" थिरं श्रमण ! इस पात्र को रखना या उपयोग में लेना चाहते हो?" पाणं संत नो पसिछिविय पलिधिदिय परिवेज्जा (तथा) उस हद पात्र के टुकड़े-टुकड़े करके परिष्ठापन भी नहीं करे-फेंके भी नहीं। तहप्पगारं पापं ससंधियं नस्सव निसिरेजा। नो य गं बीच में से सोधे हुए उस पात्र को उसी ले जाने वाले भिक्ष सातिज्जेज्जा। को दे दे किन्तु पात्रदाता उसे अपने पास न रखे। एवं बह वयण विभाणियध्वं । इसी प्रकार अनेक भिक्षुओं के सम्बन्ध में भी आलापक कहना चाहिए। से एगइओ एपप्पगारं णिग्धोसं सोया णिसम्म--से हतो कोई एक भिक्षु इस प्रकार का संवाद सुनकर समझकर सोचे महमवि मुत्तगं मुहत्तगं पारिहारियं पाये जाइत्ता-एगा- "मैं भी बल्पकाल के लिए किसी से प्रातिहारिक पात्र की याचना हेग वा-जाव-पंचाहेण वा विप्पवसिय विष्पवासिय उवागन्छि- करके एक दिन यावत्-पांच दिन कहीं अन्यत्र रहकर स्सामि, भक्यिाई एवं ममेव सिया। आऊँगा।" इस प्रकार से वह मेरा हो जायेगा। "माइट्ठाणं संफासे नो एवं फरेया।" सवंश भगवान ने कहा) यह मायावी आचरण है, अत: -आ. सु. २, भ. ६, उ. २, सु, ६०५(ग) इस प्रकार नहीं करना चाहिए । पायस्स विषण्णाइकरण णिसेहो पात्र के विवर्ण आदि करने का निषेध२५५. से भिक्खू वा, भिक्खूणी वा पो बण्णमता पायाई विवग्णाई २५५. भिक्षु या भिक्षुणी सुन्दर वर्ण वाले पत्रों को विवर्ण करेज्जा, गो विवग्णाहं पायाई वणमंताई करेजा, (असुन्दर) न करे तथा विवर्ण (असुन्दर) पानों को सुन्दर वर्ण वाले न करे । "अण्णं वा पायं लमिस्सामि" ति पटु नो अपणमण्णस्स "मैं दूसरा नया (सुन्दर) पत्र प्राप्त कर लूंगा" इस अभिदेजा, नो पामिरचं कुखजा, नो पारण पायपरिणामं करेज्जा, प्राय से अपना पुराना पात्र किसी दूसरे साधु को न दे, न किसी नो परं उवसंकमित्त एवं वदेज्जा--''आउसंतो रुमणा! से उधार पात्र ले, न है पात्र की परस्पर अदलाबदली करे और अभिकलति एवं पायं धारितए वा, परिहरित्तए वा?" न दूसरे साधु के पास जाकर ऐस' कहे कि- "हे आयुष्मन् श्रमण ! क्या तुम मेरे पात्र को धारण करना चाइते हो ?" घिर वा संत को पसिछिदिय पलिछविय परिद्ववेजा, इनके अतिरिक्त उस सुदृढ़ पात्र के टुकड़े-टुकड़े करके परठे महा मेयं पायं पावगं परो मम्मद । भी नहीं, इस भावना से कि मेरे इस पात्र को लोग अच्छा नहीं सम्झते। परं च पं अदत्तहारी पडिपहे पेहाए तस्स पायस्स गिदाणाय तथा मार्ग में चोरों को नामने आता देवकर (उस पात्र गो तेसिं मीओ उम्मगोणं गच्छेम्जा-जाब-ततो संजयामेव की रक्षा हेतु) उनसे भयभीत होकर उन्मार्ग से न जाये गामाणुगाम पूराजेन्मा। -पावत्-समाधि भाव में स्थिर होकर संयमपूर्वक ग्राभानु–आ, सु. २, भ. ६, उ. २, मु. ६०५. (५) ग्राम विचरण करे। पडिग्गहस्स वण्णपरिवण पायच्छित्त सुत्ता पात्रका वर्ण परिवर्तन करने के प्रायश्चित्त सूत्र२५६. मे भिक्खू बण्णमंतं पडिग्गहं विषणं करे, करत वा २५६. जो भिक्षु अच्छे वर्ण वाले पात्र को विवर्ष परखा है, साइम्जा। करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिरबू विवगं पशिगह पम्णमत करेह, फरतं वा साइजइ। जो भिशु विवर्ण पात्र को अच्छा करता है, फरवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। सं सेवमाणे भावस्जद चाउम्मासि परिहारटुाणं उग्धाइयं। उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १४, सु. १०-११ आता है।

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