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सूत्र १८२-१८३
एषणीय वस्त्र धारण करने का विधान
चारित्राचार : एषणा समिति
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(४) पोत्तगं वा,
४. पोत्रक-ताह भादि के पत्रों से निष्पन्न वस्त्र: (५) सोमियं वा,
५. क्षोमिक-कपान (सई) से बने वस्त्र । (६) तूलकवा ,
६. तूलकृत-आक आदि की गई से बने हुए वस्त्र । तहम्पमारं वत्वं जे पिग्गथे तरणे हुगव बलवं अपायके इन वस्त्रों में से जो निर्ग्रन्थ मुनि तरुण है समय के उपद्रव विरसंधयणे, से एमं वस्यं धारेज्जा, जो बिदये। (प्रभाव से रहित है, बलवान है, रोग-रहित है और स्थिर हनन -आ. सु. २. अ.५, उ१, सु.५५३ (बढ़ संहनन) बाला है वह एक ही (प्रकार के) वस्त्र धारण करे,
दूमरा नहीं। आहेसणिज्जवस्थ धारण विहाणं--
एषणीय वस्त्र धारण का विधान१८३. से भिक्खू बा, भिक्षूणी वा अहेसपिज्जाई वस्थाई १८३. भिक्ष. या भिक्षणी एरणीय वस्त्रों की याचना करें और
जाएजा, अहापरिग्महियाई बस्थाई धारेजा, णो धोएज्जा, जैसे वस लिए हों जैसे ही वस्त्रों का धारण करे, परन्तु (विभूषा णो रएज्जा, णो धोत्तरत्ताई वस्थाई धारेज्जा-अपलिउंचमाणे के लिए) न उन्हें धोए, न उन्हें रैने और न धोए हुए तथा न रंगे गामतरेसु ओमलिए ।
हए वस्त्रों को पहने उन (विना धोए या रगे) साधारण बस्यों को
प्रामान्तरों में न छिपाते हुए विचरण करे। एतं खलु अत्यधारिस्स सामग्गियं ।
यही वस्त्रधारी भिक्षका आवार है। -आ. सु. २, भ.५, .१, सु.५८१
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१ (क) कप. उ. २, सु. २९ । (ख) एवं तथाप्रकारमन्थदपि धारेमदित्युत्तरेण सम्वन्धः ।
-आ. टीका पृ. ३१ (ग) कप्पड णिगंथाण वा णिगयीण वा पंच बत्थाई धारितए वा, परिहत्तए वा, तं जहा–१. जंगिए, २. भंगिए, ३. मणए. ४. पोतिए, ५. तिरीडगट्टए णामं पंचमए।
- ठाणं, म. ५, उ. ३, सु.४४६ (घ) कम्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंधीण वा त्तो बयाई धारित्तए वा परिहरितए वा, वनहा -१. गिते, २. भंगिते. ३. खोमिते।
--ठाणं. अ.३, उ. ३, सु. १७५ (ङ) उपर्युक्त कल्प्य वस्त्रों की संख्याओं में और नामों में भिन्नता है। वाणांग सूत्र हाणा तीन में तीन प्रकार के वस्त्र प्राह कहे हैं और 'खोमिए' से सूती वस्त्र का कथन हुआ है।
बहकल्प सूत्र और ठाणांग सूत्र ठाणा ५ में पांच प्रकार के वन्त्र कहे हैं । इन दोनों स्थलों में मध्या व नाम नहश हैं। तथा यहाँ 'पोत्तिए' से सूती बस्त्र का कथन हुआ है।
आचारांग सूत्र के प्रस्तुत सूत्र में 'पोत्तियं' और 'खोमियं' दोनों ही शब्दों का भिन्न अयं में प्रयोग हुआ है तथा 'तिरीडपट्ट' के स्थान पर 'तूलकई' का कथन हुआ है। इस प्रकार सर्व कल्प्य वणित वस्त्र संख्या सात होना फलित
होता है। २ "अवम" का अर्थ अल्प या साधारण होता है। "अवम" शब्द यहां संख्या, परिमाण (नाप) और मूल्य तीनों दृष्टियों से अल्पता
या साधारणता का द्योतक है। कम से कम मूल्य के साधारण से और थोड़े से वस्त्र से निर्वाह करने वाला भिक्षु "अवमचेलक" कहलाता है।