Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 714
________________ ६८२] चरणानुयोग विहित स्थानों पर वस्त्र सुखाने का विधान सूत्र १६६-२०१ www वस्त्र-आतापन-४ बत्यआयावण विहित ठाणाई विहित स्थानों पर वस्त्र सुखाने का विधान-- १६६. से मिषन वा, भिक्षुणी वा अभिकलेज वरयं मायावेत्तए १६६. भिक्षु या भिक्षुणी लस्त्र को धूप में सुखाना चाहे तो उस या पयावेत्तए वा, तहप्पयारं वत्थं से तमादाए एगंतमवरक- वस्त्र को लेकर एकान्त में जाये, वहाँ जाकर देगे कि जो भूमि मेज्जा एर्गतमवस्कमिता अहे सामजिसि वा-जाब-गोम- अग्नि से दग्ध हो--यावत् -गोबर के ढेर वाली हो या अन्य यरासिसि वा अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि चंदिल्लति पनि- ऐसी कोई स्थंडिल भूमि हो उसका भलीभांति प्रतिलेखन एवं सेहिय पडिलेहिय पमज्जिय पमज्जिय ततो संजयामेय वत्वं रजोहरणादि से प्रमार्जन करके तत्पश्चात् तनापूर्वक उस वस्त्र आयावेज्ज वा, पयावेज वा। को धूप में सुखाए। -आ. सु. २, म.५,उ.१, सु. ५७६ वस्थ आयावण णिसिद्ध ठाणाई-. निषिद्ध स्थानों पर वस्त्र सुखाने का निषेध२००. से भिक्खू वा, भिक्खूणी वा अभिकर्लज्जा-वत्थं आया- २००. भिक्षु या भिक्षुणी वस्त्र को धूप में सुखाना चाहे तो ऐसे वेत्तए वा, पयावेत्तए वा, तहप्पगारं वत्वं णो अणतरहिताए वस्त्र को सचित्त पृथ्वी के निकट की भूमि पर-~-यावत्-मकही पुढवीए-जाव-मक्कडासंताणए, आयावेज वा, पयावेज्ज वा। के जाले हो ऐसे स्थान में न सुखाए । से भिक्खू वा, भिक्षुणी या अभिकंखेज्जा बत्वं आमात्तए भिक्षु वा भिक्षुणी बस्त्र को धुन में सुखाना चाहे तो वह वैसे वा, पयावेत्तए वा, तहप्पयारं वस्थं यूणसि वा, गिहेसुगंसि वस्त्र को ढूठ पर, दरवाजे वी देहली पर, उसल पर, स्नान करने पा, उसुयालंसि बा, कामजलसि वा, अश्णयरे वा तहप्पगारे की चौकी पर, अन्य इस प्रकार के और भी अन्तरिक्ष-आकाशीय अंतलिक्खजाते दुब्बो दुषिणक्वित्ते अणिकपे चलाचले णो स्थान पर जो भलीभाँति बंधा हुआ नहीं है, ठीक तरह से भूमि आयावेज्ज वा, पयावेज वा। पर गड़ा हवा या रखा हुआ नहीं है, निश्चल नहीं है, चनाचल है, वहाँ वस्त्र को न सुखाए। से भिक्खू वा, भिक्खूणी वा अभिकनेउजा वत्थं आयावेतए भिनु या भिक्षुगी यदि वस्त्र को धूप में सुस्पाना चाहे तो बह धा, पयावेत्तए वा, तहप्पगार वन्थं फुलियसि षा, मितिसि वैसे वस्त्र को ईंटों से निर्मित दीदार पर, मिट्टी से निर्मित दीवार वा, सिलसि वा, लेलसि वा, अण्णतरे वा तहप्पमारे अंत- पर, शिला पर, शिला बह-पत्थर पर या अन्य किसी इस प्रकार लिक्खजाते दुबशे-जाव-चलाचले णो आयावेत का पयावेज के अन्तरिक्ष (आकाशीय) स्थान पर जो कि भलीभांति स्थिर वा। नहीं है-यावत् - चलाचल है, (वहाँ बस्त्र को) न सुचाए। से भिक्खू वा, भिक्खूणी या अभिकलांज्या वत्वं आपावेत्तए भिक्षु या भिक्षणी बरत्र को धूप में सुखाना चाहे तो उन वा, पयावेत्तए वा. सहप्पगारं वत्वं वंसि वा-जाय-हम्मिघ• वस्त्र को स्तम्भ पर - यावत् - महल की छत पर अथवा इध तलंसि वा अण्णतरे या तहप्पगारे अंततिखजाते दुबद्धे प्रकार के अन्य अन्तरिक्ष स्थानों पर जो कि, दुर्बद्ध-यावत्-- -जाव-चलाचले णो आपावेज वा, पयावेज वा। चलाचल हो, वहां वस्त्र को सुखाए। - आ. सु. २. अ. ५, उ. १, मु. ५७५-५७६ णिसिद्ध ठाणेसु वत्थ आतावण-पायच्छित सुत्ताई- निषिद्ध स्थानों पर वस्त्र सुखाने के प्रायश्चित्त सूत्र२०१. जे भिक्खू भणंतरहियाए पुढबीए वत्थं आयावेज्ज बा, पया- २०१. जो भिक्षु वस्त्र को सवित्त पृथ्वी के निकट की भूमि पर वेज्ज वा, आपायन या, पयावंत या माइज्जा। सुखावे, सुखवावे, सुखाने वाले का अनुमोदन करें। - - - - - १ "अंतरिक्ष जातं' जो स्थल भूमि से ऊँना हो और उसके पास में ही एक या अनेक दिशा में खुला आकाश हो जिससे व्यक्ति या वस्तु के गिरने का भय बना रहता हो उसे 'अंतरिक्ष जात' आकाणीय स्थल कहा जाता है। ऐसे स्थलों पर साधु को बैठना, सोना, रहना, तथा वस्त्र आदि सुखाना नहीं कल्पता है । आचा० ० २, अ० २, उ.१ में ऐसे स्थल पर पहले से गिर जाने आदि स्थिति का वर्णन है।

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