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सूत्र २१३-२१६
चिलमिलिका के निर्माण कराने का प्रायश्चित्त सूत्र चारित्राधार : एषणा समिति
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त सेवमाणे बावज्जद मासियं परिहारद्वाणं उग्धाइयं । उसे नासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
–नि उ. २, सु. १३ चिलमिली कारावण पायपिछत्त सुत्तं
चिलमिलिका के निर्माण कराने का प्रायश्चित्त सूत्र२१३. जे मिक्यू सोत्तियं वा, रज्जुब का, चिलमिलं अण्णस्थिएण २१३. जो भिक्ष, सूत की अथवा रस्सी की चिलमिली का निर्माण वा गारथिएण वा कारेइ. कारतं वा साइग्जद । अन्यतीथिक वा गृहस्थ से करवाता है या करने गले का अनुमोदन
करता है। तं सेवमाणे आपज्जह मासिय परिहारशरणं उग्घाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्यान (प्रायश्चित्त) आता है।
-नि. उ. २, सु. १४
वस्त्रषणा सम्बन्धी अन्य प्रायश्चित्त-८
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अण्णस्थियाईणं वत्थाइदाणस्म पायच्छित सुत्त अन्यतीथिकादिक को बस्त्रादि देने का प्रायश्चिन्त सूत्र२१४. जे भिक्खू अण्ण-उस्थिग्रस्त वा, गारस्थियस्स वा वयं वा, २१४. जो भिक्ष अन्यतीथिक वो या गृहस्थ को वस्त्र, पात्र,
पडिग्गहं वा, कंबलं बा, पायपुंछणं वा धेर, यस क्ष काबिस वा पादछिन देता है, दिलाता है या देने वाले का अनुसाइजह।
मोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जइ घाउम्मासियं परिहारटाणं उग्याइयं। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. १५, सु. ७ आता है। अजाणिययस्थ गहणस्स पायचिछत्त सुतं
अज्ञात वस्त्र ग्रहण करने का प्रायश्चित्त मूत्र२१५. जे भिषन जायणावत्य वा, णिमंतणावत्यं वा अजाणिय, २१५. जो भिक्ष, याचित वस्त्र तथा निमन्त्रित बस्त्र को जाने अपुच्छिय, अगवेसिय पडिग्गाहेइ पनिगाहेंत वा साइम्जा । बिना, पूछे बिना, गवेषणा किए बिना लेता है, लिवाता है, लेने
काने का अनुमोदन करता है। से य वस्ये चउण्ह अण्णयरे सिया, तं जहा
वह वरत्र चार प्रकार के वस्त्रों में से किसी एक प्रकार का
होता है, यथा(१) णिच्च-णियसिए,
१. नित्य काम में आने वाला, (२) मजणिए,
२. स्नान के बाद पहना जाने वाला, (३) छण्णूसविए.
३. उत्सव में जाने के समय पहनने योग्य, (४) रायदुवारिए।
४. राजमभा में जाते सनय पहनने योग्य । त सेवमाणे आवाजइ चाउम्मासियं परिहारट्टाणं उघाइयं। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. १५. सु. १६. आता है। दुमुठियकुलाओ वत्थाइ गणस्स पायच्छिस सुतं- धृणित कुल से वस्त्रादि ग्रहण करने का प्रायश्चित्त सूत्र२१६. जे भिक्खू दुगुछियफुलेसु वत्यं वा, परिगहं था, कंबल वा, २१६, जो भिक्षु पूणित कुलों में वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादौंछन
पायपुंछणं वा पडिग्गाहेद, परिगाहेत या साइज्जड। लेता है, लिवाता है वा लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आषज्जइ चाउम्भासियं परिहारटुाणं उग्धाइयं । उसे चातुर्मासियः उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. च १६, सु. २१ आता है।