________________
६५६]
वरणानुयोग
गृहस्य के घर से संलग्न उपायय का अवाह निषेध
rwww.wwwww
पडिबद्ध उवसयस्स उगह णिसेहो--
गृहस्थ के घर से नंलग्न उपाश्रय का अवग्रह निषेध१२१. से भिक्खू या, भिक्खूणी वा से जं पुण जगह जाणेज्जा- १३१. भिक्षु या भिक्षुणी ऐसे अवग्रह स्थान को जाने कि जिसमें
गाहावतिकुलस्स मसंमजोणं गहुँ बस्थाए, घडिवर वा, णो टहरने पर गृहस्थ के घर में से होकर जाना-आना पड़ता हो अथवा पण्णस्स णिक्खमण पवेसाए-जाय-यामागुओग चिताए, जो गृहस्थ के घर रो संलग्न हो वहाँ प्रज्ञावान साधु को निकलना
और प्रवेश करना-यावत्-धर्मानुयोग चिन्तन करना उचित
नहीं है, से एवं गच्चा तहप्पगारे उवरसए णो उग्गहं ओगिरहेन्ज वा, यह जानकर ऐसे उपाश्रय का अवग्रह ग्रहण न करें।
पगिण्हेज्ज वा। -आ. सु. २, अ. ७, न. १, सु. ६१५ अकप्पणिज्ज उवस्मयाण उगह णिसेहो
अकल्पनीय उपाथयों का अवग्रह निषेध१२२. से मिक्स्न बा, भिक्खूणी वा से ज्जं पुण उग्यहं जायेज्जा-१२२. भिक्ष या भिक्षुणी ऐसे अवग्रह स्थान को जाने, जिनमें
इह खलु गाहायती वा जाव-फम्मकरोओ वा, अन्नमन गृहस्वामी-यावत्-नौकरानियाँ परस्पर एक दूसरे पर आक्रोश अबकोर्स तिवा-जाव-उद्दवति वा । तहेव तेल्लादि, रिणाणादि, करते हों- यावत्-उपद्रव करते हो इसी प्रकार परस्पर एक सीओदगवियडादि, णिगिणाठित्ता जहा मज्जाग आलावा, दूसरे के शरीर पर लेल आदि लगाते हों. स्नानादि सुगन्धित द्रव्य वरं उग्गह बत्तव्यता ।
लगाते हों, शीतल या उष्ण जल से गात्र सिंचन आधिकरते हों -आ. सु. २, अ. ७, उ. १, सु. ६१८ या नग्न स्थित हो इत्यादि वर्णन शय्या अध्ययन के आलापकों
की तरह यहाँ समान लेना चाहिए इतना विशेष है कि यहाँ अब
ग्रह की वक्तव्यता कहनी चाहिए। सचित्त उवस्सयस्त जग्गह णिसेहो
सचित्र उपाधय का अवग्रह लेने का निषेध-- १२३. से मिक्ख वा भिक्लूणी बा से ज्जं पुण उगाहं आमज्जा- १२३. भिक्षु या भिक्षुणी ऐसे अवग्रह स्थान को जाने कि जो स्त्री
आइग्ण संलेक्वं, णो पण्णस्स णिक्यमण पवेसाए-जाब- पुरपों आदि के चित्रों से आकीर्ण हो, ऐसा उपाश्रय प्रजावान साध घम्माणुओगचिताए से एवं जच्चा, तहप्पगारे उपए णो के निर्गमन-प्रवेश--यावत्-धर्मानुयोग चिन्तन के योग्य नहीं है। उग्गहं ओगिण्हेज वा, पगिरहेज्ज वा ।
यह जानवार ऐसे उपाथव का अवग्रह ग्रहण न करे । -आ. सु. २, अ. ७, इ. १. सु. ६१९
संस्तारक ग्रहण विधि-६
आगंतुग समणाणं सेज्जा संचारगस्स विहि
आगन्तुक धमणों के शय्या संस्तारक की विधि१२४ जदिवस च समणा निम्ग या सेज्जासंथारयं विप्पजहंति १२४. जिस दिन श्रमण-निग्रंथ गम्या-संस्तारक छोड़कर बिहार
तदिवस च णं अवरे समणा निगंथा हवमागच्छेजा सकमेव कर रहे हों उसी दिन या उसी समय दूसरे श्रमण-निग्रंत्य का जावें ओम्गहस्स पुग्वाणुनषणा घिदृह अहानमवि उम्गहे। तो उसी पूर्व गृहीत आज्ञा से जितने भी समय रहना हो शव्या
-कप्प. उ. ३. सु. २८ संस्तारक को ग्रहण करके रह सकते हैं । सेज्जासंथारग गहणं विहि
शय्या संस्तारक के ग्रहण की विधि१२५. गाहा उबू पम्जोसथिए । ताए गाहाए, ताए पएनाए ताए १२५. हेमन्त ग्रीष्म या वर्षाकाल में किसी घर में ठहरने के लिए
उवासंतराए, जमिण जमिणं सेम्जासंथारगं समेजमा, तमिणं रहा हो उस घर के उन स्थानों में जो जो अनुकूल स्थान या तमिगं ममेव सिया।
संस्तारक मिले वे वे मैं ग्रहण करू ।