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पत्र ३६-४०
आकीर्ण या अनाकीर्ण संखमे में जाने का विधि-निषेध
चारित्राचार : एषणा समिति
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जपलमहेसु वा, नागमहेसु वा, थूममहेसु था, चेतियमहेसु वा, महोत्मब, नाग महोत्सव, स्तूप-महोत्सव, चैत्य-महोत्सब अक्षवक्खमहेस वा, गिरिमहेस था, परिमहेस वा, अपडमहेस महोत्सव, पर्वत-महोत्सव, गुफा-महोत्सब, कूप-महोत्सव, तालाबपा, तलापमहेस वा, दहमहेस था, गदिमहेस वा, सरमहेस महोत्सव, द्रह-महोत्सव नदी-महोत्सव, मरोबर-महोत्सव, सागरवा, सागरमहसु वा, आगरमहेसु वा, अण्णतरेसु बा, तहप्प- महोत्सव या आकर-महोत्सव, एवं अन्य भी इसी प्रकार के विभिन्न गारेसु या, विस्वस्वेस बा, महामहेसु वट्टमाणे महोत्सव हो रहे हों, बहवे समण-जाव-वणीमए एग्गतो उक्खातो परिएसिग्जमाणे उसमें बहुत से श्रमग -यावत् –याचकों को एक मुख वाजे बर्तन पेहाए-जाव-संणिहिसंणिचिताओ वा परिएसिज्जमाणे पेहाए, से परोसते हुए देखकर-यावत्-सन्निधि संचय के स्थान से सहप्पगारं असणं बा-जाव-साइमं वा अपूरिसंतरकर-जाव- लेकर परोसते हुए देखकर इसी प्रकार के अमन-यावत--स्वाद्य अणासेवितं अफासुयं जाव-णो पडिगाहेजा ।
जो कि अपुरुषान्तरकृत-यावत् अनासेवित है तो उस माहार
को अप्रासुक जानकर-यावत्-ग्रहण न करें। अह पुण एवं जाणेन्जा-विणं तं तेसि वायवं, अहं तत्य यदि वह यह जाने कि जिनको देना था उनको दिया जा भंजमाणे पहाए गाहावतिभारियं वा, गाहायति भििण वा, चुका है, अब वहाँ गृहस्वामी की पत्नी, बहन, पुत्र, पुत्री, पश्बध गाहावतिपुत्तं वा, गाहावतिधूयं वा, सण्हं वा, धाति वा, धायमाता, दास, दासी, नौकर या नौकरानी को भोज करते बाप्त वा, दासि वा, कम्मकरं वा, कम्मकरि वा से पुजामेव हुए देखकर पूछे किआलोएज्जाप०--"आउसो 1 तिवा, मणिणि I ति बा, दाहिसि मे म -"है आयुष्मन् गृहस्थ या बहन ! क्या महस एतो अण्णवर मोजणजायं?
भोजन में से कुछ दोगी?" च.-.से से तस्स परो अमणं पा-जाब-साइमं वाउ.--ऐसा कहने पर वह गृहस्थ अशन-यावत--स्वास
आहद दलएक्जा, तहप्पगारं असणं या-जाय-साइमं आहार लाकर साधु को दे तो इस प्रकार के अशन-पावन वा सयं वा पं जाएज्जा, परो वा से देवजा, फास्यं स्वाद्य की स्वयं याचना करे या बह गृहस्थ स्वयं दे तो प्रामक -जाव-पडिगाहेज्जा ।
जानकर-यावत्-ग्रहण करे । -आ. नु. २, अ. १, 3. २. सु. ३३७ आइण्ण अणाइण्ण संखडीए गमण विहि-णिसेहो-- आकीर्ण या अनाकीर्ण संखडी में जाने का विधि
निषेध४०. से भिक्षु वा मिक्वणी चा पाहाबइकुल पिण्डवायपडियाए ४०. गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करते समय प्रिक्ष या
अगुपविट्ठे समाणे से ज्ज पुण जाणेज्जा-आहेणं या, पहेणं भिक्षुणी यह जाने कि-वर के घर का भोजन, वध के घर का वा, हिंगोलं वा, संमेलं या, हीरमाणं पेट्टाए।
भोजन, मृत व्यक्ति की स्मृति में बनाया गया भोजन, गोठ, पुत्र उन्म आदि के लिए बनाया गया भोजन, अन्यत्र ले जाया जा
रहा है तथा--- १. अंतरा से ममा बहुपाणा-जाव-भक्कडा संताणगा। (१) मार्ग में बहुत से प्राणी-यावत्-मकड़ी के जाले हैं। २. बहवे तत्व समण-जाब-वणीमगा उवागतः उवा- (२) वहाँ बहुत से थाक्या दिमण-दावत--भिखारी गमिस्संति ।
आदि आये हुए हैं और आयेंगे। ३. अच्चाइणा वित्ती।
१३) संखडीस्थल जनता की भीड़ से अत्यन्त घिरा हुआ है। ४, जो पण्णस्स णिक्षमणपसाए।
(४) वहाँ प्राज्ञ साधु का निर्गमन प्रवेश का व्यवहार उचित
नहीं है। ५. गो पाणस्स वायण-पुन्छण-परिपट्टणाऽणुप्पेह-बम्माणुयोग- (५) वहाँ शश भिक्षु की वाचना, पृञ्छना, पर्यटना, अनुप्रेक्षा, चिताए।
और धर्मक्याप स्वाध्याय प्रवृत्ति नहीं हो सकता है ।