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चरणानुयोग
एवणीय और अनेषणीय उपाश्रय
सूत्र १०२
एसणिज्जा अणेसणिज्जा व उवस्मया
एषणीय और अनेषणोय उपाश्रय१०२. से मिक्तू वा भिक्खूणी या अभिकखेज्जा उबस्सयं एसित्तए १७२ भिभु या भिक्षुणी उपाश्रय की गवेषण करना चाहे तो
से अणुपविसित्तागामं वा-जाव-रायहाणि वा से ज पुग ग्राम यावत् - राजधानी में प्रवेश करने साधु के योग्य उगाश्रय उबस्मयं जाणेज्जा-सअंड-जाव-मक्कडा संताणयं ।
का अन्वेषण करते हुए यदि यह जाने कि उपाश्य अंडों से
- यावत- मकड़ी के जाले आदि से मुक्त है तो, तहप्पगारे उवस्सए जो ठाणं वा सेज वा, मिसीहियं वा ऐसे उपाश्रय में स्थान, शय्या और स्वाध्याय न करे । चेतेज्जा। से मिस्त था भिक्खूणी वा से वजं पुण उचस्सयं जाणेजा भिक्षु या भिक्षुणी जिस उपाश्रय को मंडों से—यावत्अपंड-जाव-मक्कडा-संताणय ।
मवडी जानों से रहित जान तो, तहप्पगारे उबस्सए पडिलेहित्ता पमग्जित्ता ततो संजयामेव ऐसे उपाथय का प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके उसमें यवना ठाणं वा, सेउजं वा णिसीहियं वा चेतेजा।
पूर्वक स्थान, पाव्या एवं स्वाध्याय करे । -आ. सु. २, अ,२,उ.१.सु. ४१२ से विलू वा मिक्खूणी वा से ज्ज पुण अवस्सयं जाणेज्जा भिक्षु या भिक्षुगी यदि ऐसा उपाश्रय जाने जो श्रमण बहवे समण-जाय वणीमए समुहिस्स पाणाई-जाव-सत्ताई .. यावत्-भिखारी के उद्देश्य से प्राणी-यावत्-मयों का समारम्भ-जाव-अमिहरं आहट्ट तेति ।
ममारम्भ करके बरा हे-यावत् --अन्य स्थान से लाकर दे तो तहदगारे उपस्सए अपुरिसंतरकडे-जाव-अणासेरिते णो ठाणं ऐसा उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत -मायत- -अनासेवित दा, सेनं का, मिसीहियं वा तेज्जा ।
हो तो उसने स्थान. पाय्या एवं न्दाध्याय न करे। अह पूण एवं जाणेज्जा पुरिमंतर कडे-जान-आसेविते, पडिले- यदि यह 'जाने कि उपायय पुरुपान्तरकृत-यावत्-आसेवित हित्ता पमज्जिता ततो संजयामेव ठाणं या, सेज्ज वा, णिमी- है तो प्रतिवेदन तथा प्रमार्जन भर उसमें वतनापूर्वक स्थान, हिर्य वा, चेतेज्जा।
शय्या एवं स्वाध्याय करे। -आ. सु. २, अ. २, उ. सु. ४१४ से भिक्षू वा भिमखूणी वा से ज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्ना- भिक्षु मा भिक्षुणी यदि ऐसा उप थमा जाने जो कि गृहस्य अस्संजए भिक्खपडियाए कडिए था, उक्कं दिए बा, छत्ते वा, ने माधुओं के निमित्त काठादि लगाकर स्वारिग विया है, बांस लेते बा, घळे वा, मठे वा, संमठे वा संपधूविए बा। आदि से बाँधा है, यास आदि से आच्छादिश किया है, गोबर
आदि रो लीपा है, मॅबारा है, घिमा है या चिकना किया है, ऊबड़खाबड़ स्थान को समतल बना है. दुर्गन्ध आदि को मिटाने
के लिए धूप आदि सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित किया है। तहप्पगारे उवरसए अपुरिसंतरकडे-जाव-अण सेविए गो ठाणं ऐसा उपायय यदि अपुरुपान्तरकृत यावत्-अनासेत्रित हो वा सेज वा णिसीहियं वा चेतेज्जा।
तो उसमें स्थान शय्या और स्वाध्याय न करे। अह पुण एवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे-जाब-आसेविते, पहिले- यदि यह जाने वि वह उपाश्रय पुरस्पान्तरकृत -यावत्हिसा पज्जिता ततो संजयामेव हाणं वा सेज वाणिसी- आसेविस है तो भतिलेखन एवं प्रमार्जग करके पतनापूर्वक उसमें हियं वा चेतेश्जा । --- आ. मु २, अ. २, उ.१, सु. ४१५ स्थान, शय्या एवं स्वाध्याय करे। से भिक्खू वा भिक्खूणी वा से ज्पुण उवस्सर्य माणेज्जा- भिक्षु या भिक्षुणी ऐसा उपाश्रय जाने कि गृहस्थ ने साधुओं अस्संजते सिक्नुपडियाए खुडिया ओ नुवारियामओ महल्लियाओ के लिए छोटे द्वार को बड़ा बनाया है यावत्-संस्तारक कुस्खा-जाव-संथारगं संथरेज्जा बहिया वा णिणारख । बिछाया है, अथवा कुछ सामान बाहर निकाला है। तहप्पगारे उपस्सए अपरिसंतरकडे-जाव-अणासेविए णो ठाणं ऐसा उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत-यावत्-- अनासेदित था, सेमजं वा. मिसीहियं वा चैतेज्जा।
हो तो वह स्थान, शय्या एवं स्वाध्याय न बारे। अह पूण एव जाणेजा पुरिसंतरक-जाव-आसेविते, पडिले- यदि यह जान वि वह उपाश्रय पुरखान्तरकृत -- यावत् - हिता पमज्जित्ता. ततो संजयामेव ठाणं वा, मिसीहियं चा आसेवित है तो प्रतिदिन पर्य प्रगार्जन करच यतापूर्वक उसमें चेसेज्जा । -आ. सु. २, अ. २, उ.१,सु. ४१६ स्थान, वाण्या एवं स्वाध्याय करे ।