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चारित्राचार
सूर्योदयास्त के सम्बन्ध में शंका होने पर आहार करने के प्रायश्चित्त सूत्र
सूत्र ७३४
अन्नेसि वा इलमाणे,
या अन्य निर्गन्ध को दे तो राइभोअगरिसवषय वजह चाउम्मासिय परिहारट्ठाणं उस रात्रि-भोजन सेवन का दोष लगता है। अतः वह अनुदअणुग्घाइयं ।
- उ. ५.. ६ घातिक नानुगामिक परिहार स्थान प्रायश्चित्त का पाप होना है। भिकरजू य उपायविसीए अणत्यमियसंकप्पे
गूर्योदय पश्चात् और सूर्यास्त पूर्व भिक्षाचर्या करने की
प्रतिज्ञा वाला किन्तु, संपडिए विगिच्छा-समावणे"
सूर्योदय या सूर्यास्त के सम्बन्ध में संदिग्ध, सपाक्त एवं प्रतिपूर्ण
आहार करने वाला नियन्य भिक्षु (आचार्य या उपाध्याय आदि) असणं वा-जाच-साइमं वा पडिग्याहिता आहार आहारेमाणे अनन,–पावत् - ग्वादिम (चतुर्विध आहार) ग्रहण कर
आहार करता हुआ, अह पच्छा जाणेज्जा
यदि यह जाने कि "अणुगए सूरिए, अत्यमिए वा,"
"सूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्यास्त हो गया है" तो से जं च आसयंसि, जं च पाणिसी, जं च पडिग्गहे
उस समय जो आहार मुंह में है. हाथ में है. पात्र में है तं विगिचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ ।
उसे परट दे तथा मुख आदि की शुद्धि करले तो जिन आज्ञा
का अतिक्रमण नहीं करता है। तं अप्पणा मुंजमाणे,
यदि उस आहार को वह स्वयं खावे अग्नेसि वा दलमार्ग
या अन्य निम्रन्थ को दे राइभोयणपउिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासिगं परिहारट्ठाणं तो उसे रात्रि-भोजन सेवन का दोष लगता है। अतः वह अणुरघाइयं ।
-कप्प, ज'. ५, सु. १ अनुपातिक चातुर्माभिक परिहारस्थान प्रायश्चित्त का पार
होता है। भिक्खू य उग्गवित्तीए अणत्यमियसंकप्पे
सूर्योदयपश्चात् और सूर्यास्तपूर्व भिक्षाचर्या करने की
সুলনা বলা কথা। असंथडिए निविगइच्छासमावण्णोणं
सूर्योदय या सूर्यास्त के सम्बन्ध में असंदिग्ध, अशक्त एवं प्रतिपूर्ण आहार न करने वाला निग्रन्थ भिक्षु (आचार्य या उपा
व्याब आदि) असणं वा-जाब-साइम वा पडिग्गाहेता आहारं आहारमार्ग अशन,-यावत् स्वादिम (चविध आहार) ग्रहण कर
आहार करता हुआ अह पच्छा जाणेज्जा
यदि यह जाने कि 'अगुग्गए सुरिए, अत्यमिए वा",
"मूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्यास्त हो गया है" से अंच आसयंसि, गं च पाणिसी, जं च पडिग्गहे
तो उस समय जो आहार मुंह में है, हाथ में है, 'पात्र में हैतं विगिंचमाणे या, विसोहेमाणे वा नो अइपकमइ । उस पल दे मुग्व आदि की शुद्धि कर ले तो जिनाज्ञा का अति
क्रमण नहीं करता है। तं अप्पणा मुंजमाणे,
यदि उस आहार को वह स्वयं सावे या अन्नेसि या रलमाणे,
अन्य निम्रन्थ को दे तो राइभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारडाणं उसे रात्रि-भोजन सेवन का दोष लगता है। अतः वह अनुदअणुग्धाइयं ।
-कप्प. उ. ५, सु. ८ घातिक चातुर्मामिक परिहार स्थान प्रायश्चित्त का पात्र होता है। भिक्खू व उरगयवित्तीए अणस्थमियसंकप्पे
सूर्योदय पश्चात् और सूर्यास्त पूर्व भिक्षाचर्या करने की प्रतिज्ञा वाला
१. मशक्क, संदिग्ध।