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परगानुयोग
अपरिणत-परिणत इस पहल का विधि-निषेत्र
मे भिक्खू सचित्त-पइद्वियं अंचं वा-जाव-अंबचोयगं वा जो भिक्ष. नचित्तप्रतिष्ठित आम को-थावत् - आम के मगइ, मुंजत वा साइज्जद
छोटे-छोटे टुकड़ों को याता है, खिलाता है. 'वाने वाले का अनु
मोदन करता है। मे भिडू सचित्त-पइद्वियं अंबा -जाव-अंबंधोयगं वा जो मिक्ष, सचिनप्रतिष्ठित आम को-यावत्--आम के विरसड, विसंत वा साइबई।
छोटे-छोटे टुकड़ों को पता है, चूंसवाता है, चूंसने वाले का
अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जइ चाउम्भासिय परिहारट्टाणं उग्धाइयं। उसे चतुर्मासिक उपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
--नि. उ. १५, सु. ५-१३ आता है। अपरिणय-परिणय-ऊच्छु'-गहणस्स विहि-णिसेहो - अपरिणत-परिणत इक्षु ग्रहण का विधि-निषेध६६५. से भिक्खू वा, भिक्खूणी या अभिकलेजा उन्हुवर्ण उवा- ६६५. भिक्ष वा भिक्षणी (बिहार करते हुए आवं और) इक्ष.
गच्छिसए, में तत्य ईसरे, अ तस्य सहिडाए, ते ओग्गहं वन के समीप यदि ठहरना चाहे तो उस स्थान के स्वामी की या अगुग्णवेग्जा।
संरक्षक की आज्ञा प्राप्त करें। "काम खलु आउमो ! अहासंवं अहापरिण्यायं बसामो-जाब- आयुष्मन ! आप जितने स्थान में जितने समय तक ठहरने आउसो-जाव-आउसंतस्स ओग्नहो-जाव-साहम्मिया एत्ता व की आज्ञा देंगे हम और हमारे आने वाले स्वधर्मी उतने ही स्थान ताब ओगाह ओगिहिस्सामो, लेण पर विहरिस्सामी।" में उतने ही समय तक ठहरेंगे-बाद में विहार कर देंगे।" प०-से कि पुण तत्म भोग्गहसि एषोहियसि ?
प्र०-वे भिक्ष या भिक्षणी (इक्ष लाना चाहे तो इक्ष को
एषणा) किस प्रकार करें? 1.-अह भिन्न इचछज्जा उरछु मोत्सए या. से जं उच्छु २०-यदि वे इथ, खाना चाहें तो वे यह जानें कि
जान्जा -- स-जाव-मक्का संताणम,
इक्ष अण्डे - यावत्-मकड़ी के जालों से युक्त है, तहपगार उच्छ अफासुयं-जाव गो पडिगाहेज्जा। ऐसे दक्ष को अप्रासुक जानकर-पावत्-ग्रहण न करे । से भिक्खू वा, भिक्खूणी दा से ज्नं पुण उच्छु भिक्ष या भिक्ष णी यदि यह जाने कि-- जाणेग्जामापंछ-जाव-मक्कडा संताण, अतिरिकछिन क्ष अण्डे-यावत्- मकड़ी के जानों से रहित है किन्तु अबोन्छिन
तिरछा कटा हुआ नहीं है तथा जीव रहित हुआ नहीं है. अफासुयं-जाव-णो पडिगाहेजा।
____ अतः ऐसे इक्ष को अत्रामुक जानकर-यावत्-ग्रहण न
करें। से भिनू वा भिक्खूणी बा से ज्जं पुण उच्छु भिक्ष या भिक्षणी यदि यह जान किजाणज्जाअप्पर-जात्र-मक्कहा-संताणग, तिरिवच्छिन यह पक्ष अण्डे-यावत्-मकड़ी के जाने से रहित है वोच्छिम
और तिरछा कटा हुआ है एवं जीव रहित हो गया है -- फासुयं जाव-पडिगाहेज्जा ।
ऐसे दक्ष को प्रासुक जानकर- वावत् -ग्रहण करें। से भिमल वा, भिक्खूणी वा अभिकखेज्जा
भिक्ष मा भिक्ष णी१. अंतहन्छुयं वा, २. उपगडियं वा, ३. उप- (१) पक्ष के अन्दर का भाग, (२) इक्ष की पेलिया. चोयमं वा, ४. उच्छुसायन वा, ५. उच्छुडगलं वा, (३) इक्षक की बारीक कतली, (४) इक्ष का छिलका या. मोत्तए वा, पायए था।
(५) इक्ष के टुकारे लाना चाहे तथा उनका रस पीना पाहे. से जं पूण जाणेज्जा-अंतस्य वा-जाव-उपछुडालं तो यह जाने कि इस की मोटी फाके-यावत्-इन के या समई-जान-मक्कडा-संतानगं
टुकडे अण्डे-यावत्-मकड़ी के जालों से युक्त हैअफासुय-जात-णो पडिगाहेज्जा ।
उन्हें अप्रामुक जानकर यावत्--ग्रहण न करें।