________________
सूत्र ८२३-८२४
रोग आदि के सम्बन्ध में सावध भाषा का निषेध
चारित्राचार
[५२७
मायो ति या, मुसाबादी ति वा इतियाई तुमं, इतियाई ते (दासीपुय) या ओ कुत्ते ! ओ चोर ! अरे गुप्तचर ! अरे झुठे ! जणगा था।" एतप्पगारं भासं सावगं सकिरिपंजाब- ऐसे (पूर्वोक्त प्रकार के) ही तुम हो, ऐसे (पूर्वोक्त प्रकार के) ही मूतोपघातियं अभिकख णो भासेज्जा।
तुम्हारे माता-पिता हैं।" विचारशील साधु इस प्रकार की सावध -आ. सु. २, अ. ४, उ.१, सु. ५२६ -यावत् ---जीबोपधातिनी भाषा विचारकर न बोले । अम्जए पज्जए वा वि बप्पो खुल्लपिउ ति य ।
हे जावंक ! (हे दादा, हे नाना !) हे प्रार्यक ! (हे परदादा ! माउला भाइणेज ति पुत्ते नतुणिय ति य॥ हे परनाना !) हे पिता ! (हे वाचा !) हे मामा ! (हे भानजा !,
हे पुत्र, ! हे पोते !।
-दस. अ.७, गा. १८ इस प्रकार पुरुष को आमन्त्रित न करें। से भिक्खू या भिक्खूणी वा इत्थी आमसेमाणे आमंतिते य साधु या साध्वी किमी महिला को बुला रहे हों, बहुत अपडिसनमाणी णो एवं बवेज्जा--"होली ति या, गोली ति आवाज देने पर भी वह न सुने तो उसे ऐसे नोच सम्बोधनों से वा, वसुले ति वा, कुपरखे ति वा, पडदासी ति वा, साणे सम्बोधित न करेतिघा, सेणे ति वा, चारिए ति वा, माईति बा, मुसाबाई "जरी होली! (अरी गोली) अरी वृषली (क्षुद्र)! हे तिवा, पञ्चेयाई तुमं एसाइं ते जणगां वा एतप्पगारं मासं कुपक्षे! अरी घटदासी! ए कुत्ती ! अरी चौरटी! हे गुप्तचरी! सावज-जावणो मासेजा।
अरी मायाविनी ! अरी झूठी! ऐसी ही तू है और ऐसे ही तेरे -आ. सु. २, अ. ४, उ, १, सु. ५२८ माता-पिता हैं।" विचारशील साधु-साध्वी इस प्रकार की सावध
- यावत् जीवोपानिनी भाषा बिचारकर न बोलें। अज्जिए पज्जिए वा वि अम्मो माउस्सिय तिया।
हे आयिय ! (हे दादी!, हे नानी!) हे प्राधिके ! (हे पिउस्सिए भाणेज ति, धुए नत्तुणिए लिय॥ परदादी! हे परजानी ! है अम्ब !, हे माँ !), है मौसी! हे
बुआ !, हे भागजी 1, हे पुत्री !. हे पोती !,
-दरा, अ ७, गा. १५ इस प्रकार स्त्रियों को आमन्त्रित न करें। रूजाइसु सावज भासा णिसेहो
रोग आदि के सम्बन्ध में सावद्य भाषा का निषेधः८२४. से भिषण वा मिक्खूणी या जहा देगसियाई स्वाई-पासेज्जा E२४. साधु या साध्त्री यद्यपि अनेक रूपों को देखते हैं उन्हें देखतहा वि ताई पो एवं बवेजा,
कर इस प्रकार (ज्यों के त्यों) न कहें । तं जहा-"१. गंडी गंडो तिवा,
जैसे कि-(१) गण्डी (गाड-कण्ठमाला रोग से ग्रस्त या
जिमका पैर सूज गया हो, को गण्डी) २. कुट्टी कुट्ठी ति वा,
(२) कुष्ठ-रोग से पीड़ित को कोढियां, ३. रायसि रायसो ति वा,
(३) राजयक्ष्मा वाले को राजयक्ष्मावाला, ४. अवमारियं, अवमारिए ति वा,
(४) मृगी रोग वाले को मृगी, ५. काणियं काणिए ति वा,
(५) एकाक्षी को काना, ६. निभियं सिमिए ति वा,
(६) जड़ता वाले को जड़ता वाला, ७. कुणियं कुणिए ति वा,
(७) टूटे हुए हाथ वाले को ढूंटा, ८. खुग्निपं खुज्जिए ति था,
(5) कुबड़े को कुबड़ा, ९. उदरीं उबरीए ति वा,
(e) उदर रोग वाल को, उदर रोगी, १०, मुई मुए ति वा,
(१०) मूक रोग वाले को मुका, ११. सुणियं सुणिए ति वा,
(११) शोथ रोग वाले को गोथ रोगी,
१ (क) तहेव होले गोले ति साणे वा नमुले ति य । दमए दुहए वा बिन तं भासेज्ज पण ।।
(ख) हे हो हते ति अन्ने ति भट्टा सामिए गोभिए । होल गोल मुले ति पुरिस नेवमालवे ।। २ हले हल त्ति अन्ने ति भट्टे सामिणि गोमिणि । होले गोले बसले ति इस्थिय नेवमालवे ।।
नि भय साभिए मानिए दोन गाव मात्र लि पुरस नमालय ॥
.दस. अ. ७, गा. १४
-स. अ. ७, गा.१६ ---दस. अ. ७, गा.१६
स जगा..