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सूत्र ८८-
घृणित कुलों में भिक्षा गमन का प्रायश्चित्त सूत्र चारित्रामा : एषणा समिति
,५४६
३. राहण्णफुलाणि वा. ४. खत्तियकुलाणि वा. (३) राजन्यकुन. (४) पियकुल, ५. इक्वागफुलाणि वा, ६. हरिवंसकुलाणि बा, (५) इक्ष्वाकुकुल, (६) हरिवंगल. ७. एसियकुलाणि वा, वेसियकुलाणि वा, (७) गोपालकुल
(c) चम्यनुल. ६. गागकुलाणि वा, . कोट्टागकुस्लाणि वा, (E) नापितकुल, (१०) वकिल. ११. गामरस्खकुलाणि वा, १२. बोक्सालियकुलाणि वा, (११) ग्रामरक्षककुल, (१२) तन्तुबायकुन अण्णतरेसु वा तहप्पगारेसु अदुएंछिएसु अगरहियेसु असण ये और उसी प्रकार के और भी कृल, हो अनिन्दिन और बा-जाव-साइभ वा फासुयं एसणिज ति मण्णमाणे लामे अगहित हों, टन कुनों घरों) में अगर --यावत् ग्वादिम
संते पदिगाहेज्जा । ... . गु. २, अ. १, उ.२, मु. ३३६ प्रागुव और एषगीय मानकर मिलने पर ग्रहण करें। दुगुंछियकुलेसु भिक्खागमण पायचिछत्त सुरतं - घृणित कुलों में भिक्षा गमन का प्रायश्चित्त मूत्र८५५. जे भिक्खू बुगंछियफुलेसु असणं वा-जाब-साइमं वा पडिग्गा- ८८५. जो भिक्षु वृणित कुलों में जाकर अशन यावत वाद्य हेइ, पडिरगात या साइम्जइ।।
जना है. लिदाता है, लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजा चाउम्मासियं परिहारट्टाणं उग्धाइय। उसे उपातिक पातुर्मामिक गरिहारग्थान (प्रायश्चिन)
-नि.उ. १६. मु.२७ आता है। अगवेसणीयकुलाई
अगवेषणीयकुल८८६. से भिक्खू वा, भिक्षी वा से जाई पुण कुलाई जाणेजा, ८८६. भिक्ष एवं भिक्षणी इन कुलों की जाने ।
तं जहा–खत्तियाण वा, राईण या, कुराईण वा, रायपे- यथा--शत्रियों के कुल, राजाओं के कुल, कुत्सित राजाओं सियाण वा, रायसद्धियाण या, अंतो वा, बाहिं बा, गच्छ- के कुल, राज भुत्य. राजा के सम्बन्धियों के कुल. इन कुलों के ताण वा, संणिविट्ठाण वा, णिमंतेमाणाण बा, अणिमंतेमा- घरों में या घरों से बाहर जाते हुए, खड़े हुए वा बैठे हुए, गाण वा, असणं पा-जाव-साइम वा अफासुय-जावणो निमन्त्रण किये जाने पर या न किए जाने पर अशन यावत्
पडिग्गाहेज्जा। -आ. सु० २, अ० १. उ०३, मु० ३४६ स्वाविम अप्रामुक जानकर-पावत्-ग्रहण न करें। णिसिद्ध कुलेसु गवेसणा णिसेहो
निषिद्ध कुलों में गवेषणा-निषेध८८७. परिकुटफुलं भ पविसे, मामगं परिदज्जए।' ८८७. मुनि निदित कुल में प्रवन न करे। गृह-म्वामी द्वारा अचिपसकुलं न पविसे. नियतं पविसे कुलं ॥ निषिद्ध कुल में प्रवेण म करे जहाँ प्रवेश करने पर नाधु के प्रति ___ दग. अ. ५, 3.. गा.१७ टेष भाव प्रगट करें नहाँ न जाने । किन्तु प्रीतिकर कुल में ही
प्रवेग करे। णिसिद्धगिहेभिवखागमणपायच्छित सुल्तं
निषिद्ध घर में भिक्षा लेने जाने का प्रायश्चित्त सूत्र-- ८६८ भिक्खू गाहारइ कुलं पिण्डवाय-पडियाए अणुपविट्ठ ८८८. जो भिक्षु गायापति कुन में आहार के लिए प्रवेश करने
पंरियाइक्विते समाणे रोच्चपितमेष कुलं अणुप्पविसह, पर गृहस्थ में मना करने के बाद भी दुसरी बार उसी कुल में अणुप्पविसंत या साइज्जइ।
प्रवेश करता है. करवाता है या करने वाले का अनुमोदन
करता है। तं सेवमाणे आयक्जद मासियं परिहारट्ठागं उघाइयं । उसे उद्घातिक मामिक गरिहारस्थान (प्रायश्निन) आना है।
-नि.उ. ३, मु. १३ भिक्खायरियाए उच्चार पासवग परिद्रावण विही- भिक्षाचर्या में मल-मूत्रादि परठने को विधि-- ८६. गोयरग्गविवो उ, वाचमुतं न धारए।
८६. गोचरी के लिए गया हुआ मुनि मल-मूत्र की वाधा को न ओगासं फासुमं नच्चा, अणुनविय बोसिरे ॥
रोके और प्रासुफ-स्थान देख, उमके स्वामी की अनुमति लेकर -दस. अ. ५. १,गा.१६ वहाँ मल-मूत्र का उत्सर्ग करे।
१ (क) निषिद्ध कुलों में नित्यादि पिंड देने वाले कुलों का भी निषेध है- देखिये नियपिट दोष ।
(क) अनीतिकर कुल से भक्त-पान आदि के ग्रहण का निषेध-देखिए प्रश्नव्याकरण---तृतीय संवरद्वार सूत्र-५