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५५४] चरणानुयोग
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सोलह उम दोष
(५) स्थापना - साधु-साध्वियों को देने के लिए (६) प्राभूतिका-समीप के गाँव सेवा या समय परिवर्तन करना ।
सोलह उद्गम दोष
आहाकम्मुद्दे सियं पूइकम्मे ग मीसजाए य । ठवणा पाहुडियाए पाओयर कोय पामि ॥ पट्टिए उम्म मासो असि अोवर व सोसण्ड० नि००२-४ (१) आधाकर्म किसी एक विशेष साधु साध्वी के उद्देश्य से आहारादि का निष्पन्न करना | (२) औद्दे शिक - एक या अनेक श्रमण ब्राह्मणादि के उद्देश्य से आहारादि का निष्पन्न करना । (३) पूतिकर्म प्रासुक एवं एषणीय आहार में आधाकर्म आहार का अत्यल्प या अधिक मिश्रण करना । जात अपने लिए और के लिए एक साथ माहारादि बनाना। आहारादि अलग स्थापित कर रखना ।
(४)
आजही अभी पधारने वाले है यह जानकर पाहों के जी
(७) प्रातुकरण - अन्धकार युक्त स्थानों में दीपक आदि से प्रकाश करके आहारादि देना ।
(८) फीत साधुसी के लिए आहारादि खरीद कर देना।
(६) प्रामित्य - साधु साध्वी के लिए आहारादि उधार लाकर देना ।
(१०) परिवर्तित -- अपने घर में बना हुआ आहार किसी अन्य को देकर साधु-साध्वियों को उनका अभिलषित आहार लाकर देना ।
(११) अमित - साधु साध्वी को उनके स्थान पर आहारादि लाकर देना |
(१२) उद्भिन्न- किसी विशेष लेप से बन्द किए हुए पात्र के मुंह को खोलकर साधु साध्वी को लिए खाद्यादि
पदार्थ देना ।
(१३) माला पहृत — मंच या टांड आदि ऊँची जगह पर रखे हुए खाद्य पदार्थों को निमरणी आदि से उतारकर देना । (१४) आछे किसी तर आहारादि देना।
(१२) अभि
भागीदार के पदार्थ उसकी आज्ञा लिए बिना देना।
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(१६) अध्यवपूरक - साधु या साध्वियों गाँव में आये हैं ऐसा सुनकर अपने लिए बन रहे भोजन में कुछ अधिक बढ़ाकर भोजन बनाना ।
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ये सभी दोष गृहस्थ अपने अविवेक से लगाता है। अतः साधु गृहस्थ से विवेकपूर्वक प्रश्न करके आहारादि के उद्गम दोष जानकर शुद्ध आहारादि ले ।
१ जना नवले
इनमें से कुछ दोष भोजन बनाने से पूर्व कुछ भोजन बनाते समय, कुछ भोजन बनाने को बाद और कुछ साधु-साध्वी को आहार देते समय लगाये जाते हैं ।
उद्गम दोष --४
(१) आहाफम्म दो...
आहाकम्मिय आहार गहण जिसेहो
८६७. अहा वाण णिकामएज्जा, निकामयते ण य संयवेश्या । बेच्या सोयं भगवा ॥ सू. सु. १. अ. १०. पा. ११
अणुमा
- दसा. द. २, सु. २
(१) आधाकर्मदोष
आधाकर्मी आहार ग्रहण का निषेध-
८७. साधु आधाकमीं आहार की कामना न करे और कामना करने वाले की प्रशंसा व समर्थन न करे। स्थूल शरीर की अपेक्षा न रखता इमा, अनुजापूर्वक अनमाधि को छोड़कर स् शरीर को कृष्ण करे ।