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चरणानुयोग
गृहस्थ के घर में नहीं करने के कार्य
सूत्र ८७५-८७.
अह पुगेवं जाणेन्जा-पडिसेहिए ३ दिन्ने वा, तओ तम्मि जब वह वह जान ले कि - गृहस्थ ने श्रमणादि को आहार णिवद्रित संजयामेव पविसैज वा, ओभासेज्जया।' देने से इन्कार कर दिया है, अथवा उन्हें दे दिया है और वे उस -आ. सु. २, अ. १, उ. ५, सु. ३५७ घर से निपटा दिये गये हैं, तब वह संयमी माधु स्वयं उस
गृहस्थ के घर में प्रवेश करे. अथवा आहारादि की याचना करे । गाहावईकुले णिसिद्धकिच्चाई
गृहस्थ के घर में नहीं करने के कार्य-- ८७६. से मिक्खू वा, भिक्षुणी वा गाहावहकुलं पिडवायं पडियाए ८७६. भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थों के घरों में आहार के लिए अणुपवि? समाणे -
प्रवेश करकेनो गाहावइकुलस्स वा दुवारसाह अबलंबिय अवलंबिय गृहस्थ के द्वार की शाखा को पकड़-पकड़कर खड़ा न रहे। चिटुम्मा । नो गाहावइकुलस्स वा दगछाउणमेत्तए चिट्ठज्जा,
महस्थ के पात्र प्रक्षालित गानो टालने के स्थान पर खड़ा
न रहे। मो गाहावइकुलस्स चणिउपए चिट्ठज्जा,
गृहस्थ के हाथ मुंह धोने के स्थान पर खड़ा न रहे। नो गाहावहकुलस्स सिणाणस वा, वच्चस्स वा संलोए गृहस्थ के स्नानघर के या शौचालय के द्वार पर नजर सपडिदुवारे चिट्ठज्जा
पड़े-ऐसे स्थान पर खड़ा न रहे। नो गाहाबकुलस्स आलोयं वा, गिलं वा, संधि वा, गृहस्थ के घर के गवाक्ष को, घर के सुधारे हुए भाग को, बगभवण वा, बाहाओ पगिज्निय पगिजिमय, अंगुलियाए वा घर के संधिस्थान को, जलगृह को हाथ लम्बा कर करके अंगुली उद्दिसिय उद्दिसिय, उणमिय उपणमिय. अवनमिय से संकेत कर कर, गरदन केंची उठा उठावर, या झुका झुकाकर अवनमिय निजमाइज्जा।
न देखे, न दिखाए। गो गाहावई अंगुलियाए उद्दिसिय उदिसिय जाइज्जा, तथा गृहस्थ को अंगुली से संकेत कर बारके याचना न करे। नो गाहावई अंगुलियाए चालिय चालिय जाइज्जा,
गृहस्थ को अंगुली चला चलाकर (वस्तु का निर्देश करने
हुए) याचना न करे। नो गाहावह अंगुलियाए तन्जिय तज्जिय जाइमा,
गृहस्थ का अंगुली से नर्जन नादन कर करकं याचना न करे। मो गाहावई अंगुलियाए उपखुलपिय उक्त्वंपिय जाइजा, गृहम्प को अंगुनी से स्पर्श (घुसड) बार करके माचना न
करें। नो गाहावई अविय यंदिय जाइज्जा,
गृहम्भ की वन्दन कर करके मानना न करे । नो यणं फरस बवेज्जा।
(सधा न देने पर गुहा को) कसोर वमन न करे। - आ. सु. २, १.. ६. म. ३६० संकिलेसठाणणिसेहो ...
संक्लेश स्थान निषेध४७. रो गिहवईण च. रहस्सा रविण्याण य ।
८७७. राजा, गृहपति, अन्तःपूर और भारक्षकों के स्थानों को सकिलेसकर ठाण. दूरओ परिवज्जए॥
गुनि दुर से ही त्याग दे--क्योंकि ये स्थान क्लेशवर्धक होते हैं। -दस, अ. ५, २.१, गा.१६ भिक्खागमण काले पायपडिलेहण बिहाणं
भिक्षार्थ जाने के समय पात्र प्रतिलेखन को विधि२७८. से भिक्खू वा. भिक्खूणी वा गाहावाकुल पिडवाय पडियाए ८७८. भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार-पानी के लिए,
पविसमाणे पुष्वामेव पेहाए पडिगह अवहट्ट पाणे, पम्जिय प्रवेश करने से पूर्व ही भिक्षा पात्र को भलीभांति देखें, उसमें कोई १ परिसंहिए व दिन्ने वा, ओ तम्मि नियत्तिए । उसकमज्ज भत्तट्ठा, पाणट्टाए व गंजए ॥ दम. अ.५. उ.२, गा. १३ २ अग्गलं फनिह दारं, कवाडं वा वि संजए। अवलंश्रिया न चिट्ठज्जा, गोयरम्गगओ मुणी ।। -दस. अ.५, उ.२. गा. ३ सिणाणस्ल व वनम्ग, लोग परिवज्जए ।
दम. अ. ५, उ. १. गा. २५ ४ आलोय थिग्गलं दारं मंधि दगभवणाणि य । चरंतो न विणिजाए, संकट्ठाणं विवज्जए । दस.अ.५, उ.१. गा.१५