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सूत्र ७७५-७७७
अटवी में जाने के विधि-निषेध
चारित्राचार
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अडखोए गमणस्सविहि-णिसेहो
अरबी में जाने के विधि-निषेध७७५. से भिक्खू वा भिक्खूणी या गामाणुगाम दूरज्जेज्जा, ७७५. ग्रामानुग्राम में बिहार करते हुए साधु या साध्वी यह जाने
अंतरा से विहं सिथा, सेज्ज पुण विहं जाणेज्जा- एगाहेण कि आगे लम्बा अटवी-मार्ग है। यदि उस अटवी मार्ग के विषय वर, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण त्रा, पंचाहेण बा, में वह यह जाने कि यह एक दिन में दो दिनों में, तीन दिनों में, पाउणेग्जा वा, णो वा पाउणेग्जा।
चार दिनों में या पांच दिनों में पार किया जा सकता है, अथवा
पार नहीं किया जा शंकता है, तहप्पगारं विहं वर्षगाहममणिज्ज सति लादे-जाव-विहाराए तो बिहार के योग्य अन्य आर्य जनपदों के होते हुए-यावत्संयरमाणेहिं जगवएहि णो विहारवत्तियाए पवज्जेज्जा (उम अनेक दिनों में पार किये जा सकने वाले भयंकर) अटवी गमगाए।
मार्ग से विहार करके जाने का विचार न करें। केवली पूया-आयाणमेयं ।
केदली भगवान कहते हैं ऐसा करना कर्मबन्ध का कारण है, अतरा से वासे सिया पाणेसु वा, पणएसुवा, बीएमु वा, क्योंकि मार्ग में वर्ण हो जाने से द्वीन्द्रिव आदि जीवों की हरिरसुवा, कमलशासविनार गावित्थर उत्पत्ति हो जाने पर गार्ग में काई, (लीलन, फूलन) बीज,
हरियाली, सचित्त, पानी और अविष्वस्त मिट्टी आदि के होने से
संयम की विराधना होगी सम्भव है। अह मिक्खूण पुरुखोवदिडा-जाव-एस उपएसे जं तहप्पगारं अतः भिक्षुओं के लिए तीर्थकरादि ने पहले ही यह प्रतिज्ञा विह अणेगाहगमणिज्ज सति लाडे णो विहार पत्तियाए पवे. -यावत्-उपदेश दिया है कि वह साधु या साध्वी अन्य साफ और अज्जा गमणाए । ततो संजयमेव गामाणुगाम दूइज्जेज्जा। एकाध दिन में ही पार किया जा सके ऐसे मार्ग के होते हुए अन्य -आ० सु. २, अ०३, . १, सु० ४७३ मार्ग से विहार करके जाने का संकल्प न करे। अतः साधु को
परिचित और साफ गार्ग से ही यतना-पूर्वक ग्रामानुग्राम विहार
करना चाहिए। विरुद्धरज्जाइसु गमणरुस विहि-णिसेहो
बिरुद्ध राज्यादि में जाने के विधि-निषेध७७६. से भिक्यू वा, भिक्षूणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा ७७६, साधु या साध्वी प्रामानुग्राम विहार करते हुए यह
अरापाणि वा, जुवरायाणि बा, दोरन्जाणि वा, वेरज्जाणि जाने कि ये अराजक (राजा से रहित) प्रदेश हैं, या यहाँ केवल वा, विरजाणि वा, सति लादे विहाराए संभरमार्गेहि युवराज का शासन है, (जो कि अभी राजा नहीं बना है) अथवा जणवएहि णो विहारबसिवाए पवजेज्जा गमणाए। दो राजाओं का सामन है, या परस्पर दो शत्रु-राजाओं का राज्य
है, या धर्म-विरोधी राजा का शामन है ऐसी स्थिति में बिहार के योग्य अन्य आर्य जनपदों के होते हुए, इस प्रकार के अराजक आदि
प्रदेशों में विहार करने की दृष्टि से गमन करने का विचार न करें। केवली व्या-आयाणमेयं ।
केवली भगवान ने कहा है ऐसे अराजक आदि प्रदेशों में
जाना कर्मबन्ध का कारण हैते गं बाला "अयं तेणे-जाय-तह पगाराणि विरुवरुवाणि क्योंकि वे अज्ञानीजन साधु के प्रति शंका कर सकते हैं "यह पच्चंतियाणि-जाव-अकाल परिभोईणि-सति लाहे विहाराए चोर है यावत्-तथारूप अनेक म्लेच्छ --यावस्-अकालसंयरमाणेहिं जगवएहि गो विहारयत्तियाए पवज्जेज्जा गम- भोजी प्रदेशों में अन्य आर्य जनपदों के होते हुए विहार की दृष्टि णाए । ततो संजयामेव गामाणुगाम दूहज्जेज्जा।
से जाने का संकल्प न करें । अतः साधु इन अराजक आदि प्रदेशों ----आ० सु० २, अ० ३, उ०१, सु. ४७२ को छोड़कर यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे। वेरज्जे विरुद्धरज्जे गमणाममणस्स पायच्छित्त सुत्त- अराज्य और विरुद्ध राज्य में गमनागमन का प्रायश्चित
७७७. जे भिक्खू वेरज्जे-विरुद्धरजसि सज्ज गमण, सज्ज आग
मणं, सज्ज गमणागमणं करेड करेत वा साइज्जद ।
७७७, जो भिक्षु अराजकता वाले राज्य में या विरुद्ध राज्य में जल्दी-जान्दो बाता है, जल्दी-जल्दी आता है, जल्दी-जल्दी जाने-आन के लिए प्रेरणा देता है जल्दी-जल्दी जाने-आने वाले का अनुमोदन करता है।