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५१.]
घरणानुयोग
तीथंकरों ने चार प्रकार की भाषा प्रस्पो है
सूत्र ७८७-६८८
भाषासमिति
विधिकल्प-1
तिकालिय तित्थयरेहि चत्तारि भासा परूविया
कालिक तीर्थकरों ने चार प्रकार की भाषा प्ररूपी है७८७. अह भिक्खू जाणेज्जा चत्तारि भासज्जायाई, तं जहा- ७६७. साधु को भाषा के चार प्रकार जान लेने चाहिए। वे इस
सच्चमेयं पहम . मोय हो, तर या सोरा, प्रकार है--१. मत्या. २. मृषा, ३. सत्यामृषा और जो न मत्या जं व सच्चं व मोसं, व सच्चामोस, असच्चामोस है. न अमत्या है और न ही सत्यामृषा है वह, ४. असल्यामुषा णाम तं चउत्थं भासमास ।
(व्यवहार भाषा) नाम का चौथा भाषाजात है। से बेमि–जे य अतीता, जे य पडुप्पणा, जे य अणागया जो मैं यह कहता हूँ उसे भूतकाल में जितने भी तीर्थकर अरहता भगवतो सम्वे ते एताणि चेव च सारि भासज्जासाई भगवान् हो चुके हैं, वर्तमान में भी नीर्थकर भगवान हैं और मासिसु वा, भासिति बा, भासिरसंति वा, पाणवेति बा, भविष्य में जो भी तीर्थंकर भगवान् होंगे, उन सबने इन्हीं चार पण्णविस्संति वा ।
प्रकार की भाषाओं का प्रतिपादन किया है, प्रतिपादन करते हैं और प्रतिपादन करेंगे अथवा उन्होंने प्ररूपण किया है, प्ररूपण
करते हैं और प्ररूपण करेंगे। सम्बाई च गं एयाणि अचित्ताणि अण्णमंताणि, गंधमंताणि, तथा यह भी उन्होंने प्रतिपादन किया है कि ये सब भाषा रसमंताणि, फासमंताणि अयोवचदयाई विप्परिणामधम्माई द्रव्य (भाषा के पुद्गल) अचित्त हैं. वर्मा, गन्ध, रस और स्पर्श भवंति ति अक्खाताई।
___ वाले हैं तथा चय-उपचय (वृद्धि हास अथवा मिलने-बिछुड़ने) -आ० सु० २, अ० ४, उ० १, सु० ५२२ वाले एवं विविध प्रकार के परिणमन धर्म वाले हैं। विवेगेण भासमाणो आराहगो, अविवेगेण भासमाणो विवेक पूर्वक बोलने वाला आराधक, अविवेक से बोलने विराहगो
बाला विराधक७८८. स वक्यसुदि समुपेहिया मुणी.
७८८. वह मुनि वाक्य-शुद्धि को भली-भांति समझ कर दोषयुक्त गिरं च दुट्ठ परिवज्जए सया। वाणी का प्रयोग न करे । सोच विचार कर मित और दोषरहित मियं अट्ट अणुवीई भासए,
बाणी बोलने वाला साधु मत्पुरुषों में प्रयंसा को प्राप्त होता है। सयाणमजमे लहई पसंसणं ॥ भासाए दोसे य गुणे य जाणिया,
भाषा के दोषों और गुणों को जानकर दोषपूर्ण भाषा को तोसे य दुटुं परिवजिए सया। सदा वर्जने वाला, छह जीवनिकाय के प्रति संयत, श्रामण्य में सदा छसु संजए सामणिए सया जए,
सावधान रहने वाला प्रबुद्ध भिक्षु हित और मौलिक बचन बोले । वएज्ज बुडे हियमाणुलोपियं ॥ परिक्षभासी सुसमाहिई दिए,
गुण-दोष को परग्य बर बोलने वाला. सुसमाहित-इन्द्रिय चउक्कसायावगए अणिस्सिए । बाला. चार नपायों से रहित, अनिथित्त (नट) भिशू पूर्वकृत स निक्षुषे पुनमल पुरेकर्ड.
पाप-सल को नष्ट कर वर्तमान तथा भावी लोक की आराधना आराहए लोगमिण तहा परं॥ करता है।
--दला. अ. ७ गा. ५५-५७
१ (क) नत्तारि भागाजाना पनत्ता. जहा-- सच्चमेगं भासज्जातं वितियं गोरा ननियं सच्चमोसं. चउन्य अमञ्चमोमं ।
- ठाणं, अ. ४. उ. १. सु. २३७ () पण्ण, प.११. सु. ७० ।
(ग) पग. प.११. मु. ८१८ ।