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सूत्र ७३२-७३४
रात्रि में तैल आदि के मालिश का निषेध
चारित्राचार
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पारियासिय तेल्लाईणं अभंग णिसेहो
रात्रि में तेल आदि के मालिश का निषेध७३२. नो कप्पद निर्गवाण वा निग्गंधीण वा,
१७३२. निग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को पारियासिएणं तेल्लेण वा, घएण वा. नरनोएण या, बसाए अगन गरीर पर परिवामित तन-पत-रवनीत और धमा वा,
(/) का गाई अभंगित्तए वा, मविस्वत्तए वा,
चुपड़ना या मलना नही कल्पना है। नन्नत्य गाढाऽमाहि रोगायकेहि । -कप्प. उ. ५, मु.४६ केवल उग्र रोग या आतंकों में लगाना कल्पता है। पारिवासिय कक्काईणं उबटण णिसेहो -
रात्रि में कल्कादि के उबटन का निषेध७३३. नो कम्पद निग्गंधाण वा निर्गवीण बा,
३३. निग्रन्थों और निन्थियों को परिवासिएणं कक्फेणं वा, लोणं या, पधूवेणं वा,
अपने शरीर पर परिवामित कन्क, लोध पर धूप आदि का अन्नयरेणं वा आलेवणजाएणं गायाई उपलेत्तए या उस्बट्ट. किमी एक प्रकार का दिनपन करना या उबटन करना नही सए वा,
कल्पता है। नन्नत्य गावागाडेहि रोगाय केहि। -कप्प. उ. ५. सु. ५ केवल उग्र रोग या आतंकों में लगाना कल्पता है।
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रात्रिभोजन के प्रायश्चित्त-२
सरस्स उदयस्यमण-विइगिच्छाए पायच्छित सुत्ताणि- सूर्योदयास्त के सम्बन्ध में शंका होने पर आहार करने के
प्रायश्चित्त सूत्र७३४. भिक्खू य उपपयवित्तीए अणथमिय-संकप्पो सहिए' निवि- ५३४. सूर्योदय पश्चात् और गर्यारन पूर्व भिक्षाचर्या करने की
गच्छा समावणे असणं वा-जाव-साइम वा पडिग्गाहेता प्रतिज्ञा वाला तथा सूर्योदय या सूर्यास्त के सम्बन्ध में असं दिग्ध आहारं बाहरेमाणे,
सशक्त एवं प्रतिपूर्ण आहार करने वाला निर्ग्रन्थ भिक्षु (आचार्य या उपाध्याय आदि) अशन, यावत् स्वादिय (चतुर्विध आहार)
ग्रहण कर आहार करता हुआ, अह पन्छा जाणेज्जा--
यदि यह जाने कि "अगुग्गए सरिए, अत्यमिए वा"
"मूर्योदय नहीं हुआ है अथवा सूर्यास्त हो गया है" से जंच आसयंसि, जं च पाणिसि, जंच पडिन्गहे,
तो उस मगय जो आहार मुंह में है. हाथ में है, पात्र में है, तं विगिबमाणे वा, विसोहमाणे या णो अइक्कमइ ।
उसे परठ दे तथा मुन्व आदि की शुद्धि कर ले तो जिनाज्ञा
का अतिक्रमण नहीं होता है। तं अप्पणा मुंजमाणे,
यदि उस आहार को वह स्वयं ग्वावे
१. मस्तृत-शब्द का अर्थ है--सशक्त, स्वस्थ और प्रतिदिन पर्याप्तभोजी निन्थ भिक्षु । २. निर्विचिकित्स-गद का अर्थ है संशय रहित--अर्थात् - सूर्योदय हो गया है या सूर्यास्त नहीं हुआ है. इस प्रकार के निश्चय
वाला निर्गन्ध ।