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अस्थिर काष्ठादि के ऊपर होकर जाने का निषेध
चारित्राचार
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निषेध कल्प-२
अथिर फटाह उवरिगमण णिसेहो
अस्थिर काष्ठादि के ऊपर होकर जाने का निषेध७४७. होज्ज कट्ठ सिलं वा वि. इट्टाल का वि एगया । ७४७. यदि कभी काठ, शिला या ईंट के टुकड़े संक्रमण के लिए
छवियं संकमछाए, तं च होज्न लाचलं ॥ रखे हुए हो और वे चलाचल हों तो सन्द्रिय समाहित भिक्षु उन न तेण भिक्खू गच्छज्जा, दिडो सत्य असंजमो । पर होकर न जाये । इसी प्रकार वह प्रवाश-रहित और पोली गंभीर मुसिर चेव, सविवदियसमाहिए॥ भूमि पर से न जाये । भगवान् ने वहाँ असंयम देखा है।
-दस. अ. ५, र.१, गा.६६-६७ मणी इंगलाई न अइक्कमे -
भिकायलादि का मसिनामजन परे:-- ७४८, इंगाल छारियं रासिं, तुसरासि व गोमयं ।
७४८. संवमी मुनि सचित्त-रज से भरे हुए गैरों से कोयले, राख, ससरपस्ने हि पाहि, संजओ तं न अइक्कमे ॥ भूसे और गोबर के ढेर के ऊपर होकर न जाये ।
-दस. अ.५, उ.१, ना. ७ राईए-गमण णिसेहो
रात्रिगमन निषेध७.४६ नो कप्पद निग्गंयाण वा, निग्गंथीण वा,
७४६. निर्गन्थों और निर्ग्रन्थियों कोराओ वा बियाले वा,
रात्रि में या विकाल में। अडाणगमण एसए। -- कम्प. उ. १, मु. ४६ विहार (यामानुग्राम मार्ग गमन) करना नही कल्पता है । गोणाइ भएण उम्मग गमण णिसेहो
सांड दि के भय से उन्मार्ग से जाने का निषेध७५०. से भिक्खू वा मिक्सपो वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे अंतरा ७५.०, ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी यदि मार्ग
से गोणं विपाल पडिपहे पहाए-जाव-चित्तचेल्लड़यं वियाल में मदोन्मत्त सांड विर्षला सांप---यावत्-चीते आदि हिंसक परिपहे पहाए णो तेसि भीतो उम्मग्गेणं गच्छेजा, णो पशुओं को सम्मुख आते देखे तो उनसे भयभीत होकर न उन्मार्ग मगातो मग संकजा , णो गहणं वा वणं श दुग्ग वा से जावे. न एक मार्ग से दुमरे मार्ग पर मंक्रमण करे न रहन, अणुपविसेज्जा, णो सक्वंसि बुरुहेम्जा, णो महतिमहालयसि वन एवं दुर्गम रथान में प्रवेश करे, न वृक्ष पर चढ़े, न गहरे तथा उदयसि कार्य विओमेज्जा. जो बाउं वा, सरण वा, सेण वा, विस्तृत जल में प्रवेश करे और न सुरक्षा के लिए किसी दाड़ की, सत्यं वा कखेज्जा, अप्पुस्सुए-जाव-समाहीए, ततो संजयामेव शरण की, सेना की या शस्त्र की आकांक्षा करें। अपितु शरीर गामाणुगाम दूइजेज्जा।
और उपकरणों के प्रति राग-द्वप रहित होकर काया का व्युत्सर्ग -आ. सु. २, भ. ३, उ. ३, सु ५५५ करें, आत्मकत्वभाव में लीन हो यावत् समाधिभाव में स्थिर
रहे । उन्मत्त तिथंच आदि के चले जाने पर वह यतनापूर्वक
ग्रामानुगाम विचरण करे। वस्सुगायतणमग्गेण गमण णिसेहो
. दस्यु प्रदेश के मार्ग से गमन का निषेध : - ७५१. से भिखू बा भिक्षुणी वा गामाणुगाम पूज्जमाणे अंतरा०५१. ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए माधु या साध्वी को मार्ग
से विवस्वाणि पच्चंतिकाणि सुगायतणाणि मिलक्वणि में विभिन्न देशों की सीमा पर रहने वाले दस्युओं के, म्लेच्छों के अणारियाणि दुस्सण्णपाणि दुप्पण्णणिज्जाणि अकालपडि- या अनार्यों के स्थान मिन्ने, तथा जिन्हें बड़ी कठिनता से आर्यों बोहीणि अकालपरिमोईणि, सति लाते विहाराए संघरमाणेहि का आचार गमझाया जा सकता है, जिन्हें दुख से धर्म-बोध जणषएहि णो विहारवत्तियाए पवज्जेम्जा गमणाए । देकर अनार्य-कर्मो से हटाया जा सकता है, ऐसे अकाल (समय)
में जागने वाले, करामय में लाने-पीने वाले मनुष्यों के स्थान मिलें तो अन्य ग्राम आदि में बिहार हो सकता हो या अन्य आर्य-जनपद विद्यमान हों तो प्राक-भोजी साधु उन म्नेच्छादि के स्थानों में विहार करने की दृष्टि रो जाने का मन में संकल्प न करे।