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धरणानुयोग
पापस्थानों से जीवों की गुरुता
सूत्र ३०६-३०६
अभिय-समिय संवरे, सयाजयण-घडण-सुविमुखवंसगे एए अणु- जो साधु ईर्यासमिति आदि (पूर्वोक्त पच्चीस भावनाओं) बरियसंमते घरमसरोरघरे विस्सतीति ।
सहित होता है अथवा ज्ञान और दर्शन से सहित होता है तथा - पह. सु. २. अ. ५, सु. १८ कषायसंबर और इन्द्रियसंबर से संवृत्त होता है, जो प्राप्त संयम
योग का यत्नपूर्वक पालन करता है और अप्राप्त संयमयोग की प्राप्ति के लिए यत्नशील रहता है, सर्वथा विशुद्ध श्रद्धावान होता
है, वह इन संचरों की आराधना करके अशरीर (मुक्त) होगा। पाप ठाणेहि जीवाणं गरुयत्त - -
पाप स्थानों से जीवों की गुरुता३०७, १०-कहष्णं मंते ! जीवा गरुयतं हवमागमछति ? ३०७.प्र.-भगवन् ! जीव किस प्रकार शीघ गुरुरव (भारीपन)
को प्राप्त होते हैं? उ.-गोयमा ! पाणाइवाएग, मुसावाएणं, अविक्षावागणं, 3-गौतम ! प्राणातिपात से, मृषाबाद से, अदत्तावान से,
मेहणेणं, परिग्रहेणं, कोह-माण-माया-सोभ-पेज्ज-बोस- मथुन से, परिग्रह से, क्रोध से, मान से, मामा से, लोभ से, प्रेम कलह-अम्मक्वाण-पिसुल-रइमरइ-परपरिबाय-माया- (राग) से, द्वेष से, कलह से, अभ्याख्यान से, पैशुन्य से, रतिमोस-मिच्छादसणसल्लेणं एवं खलु गोयमा ! जीवा अरति से, परपरिवाद परनिन्दा) से, मायामृषा से, और मिथ्यागझ्यतं हवमागच्छति।
दर्शनशल्य से, इस प्रकार हे गौतम ! जीव शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त
–वि. स. १, उ. ६, सु. १ होते हैं । विरहाणेहि जीवाणं लहुयत्त
विरति-स्थानों से जीवों की लघुता१०८.प.-कहवं मंते ! जीवा लहुपसं हवमागच्छति ? ३०. प्र०-भगवन् ! जीव किस प्रकार शीघ लघुत्व (लघुता
हल्केपन) को प्राप्त करते हैं ? 3.-गोषमा ! पाणाइबायावेरमणणं-जाव-मिच्छासणसाल उ०-गौतम ! प्राणातिपात से विरत होने से पावत्
बेरमणेणं एवं खलु गोयमा । जीवा लायसं हव. मिथ्यादर्शनशल्य से विस्त होने से जीव' शीघ्र लवृक्ष को प्राप्त मागच्छति,
होते हैं। एवं संसार आउलीकरेंति, परित्ति काति
इस प्रकार जीव संसार को बढ़ाते हैं और परिमित करते हैं, एवं संसार कोही करेंति, हस्सो करेंति, दीर्घकालीन करते हैं, अल्पकालीन करते हैं, बार-बार भ्रमण एवं संसारं अणुपरिपट्टन्ति, बीइवयंति
करते हैं, संसार को लांघ जाते हैं। पसरपा चत्तारि, अप्पसस्था चत्तारि।'
उनमें से चार (लघुत्व, परित्तीकरण, नस्वीकरण एवं व्यति- वि. स. १, उ.६, सु. २-३ ऋमण) प्रशस्त हैं और चार (गुरुत्व, वृद्धीकरण, दीर्धीकरण एवं
पुनः-पुन. भवभ्रमण) अप्रशस्त हैं। क्सविहे असंवरे
दस प्रकार के असंवर३०१. बसविधे असंवरे पणते, तं जहा .
३०.. दस प्रकार के असंवर कहे गये हैं, यथा१. सोतिदियअसंबरे, २. चविखवियअसंवरे, (१) योन्द्रिय असंवर, (२) चक्षुइन्द्रिय-असंबर ३. धाणिवियअसंवरे, ४. जिग्मिवियमसंवरे, (३) प्राणेन्द्रिय-असंबर (४) रसना-इन्द्रिय असंवर, ५. फासिव्यिसंवरे, ६. मणअसंबरे,
(५) स्पर्शनेन्द्रिय असंवर, (६) मन-असंवर, ७. वयमसंबरे, ८. कायमसंबरे,
(७) वरन-असंवर, (८) काय-अनंबर, है. उवकरगमसंबरे, १०. सूचीकृसम्पअसंबरे। (e) उपकरण-असंबर, (१०) सूचीकुशान-असंवर ।
-ठाणं. अ. १. सु. ७०६
१ २
वि. स. १२, उ. २, सु. १४ । आणं, अ.५,उ.२, सु. ४२७ ।
३ ठाणं. अ. ६, सु. ४६७ 1