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परणानुयोग
अहिंसा स्वरूप के प्रापक और पालक
सूत्र ३२२-३२३
४. खुहियागं बिव असणं,
(४) भूखों के लिए भोजन के समान है, ५. समुहमग्झे व पोयवहणं,
(५) समुद्र के मध्य दूबते हुए जीवों के लिए जहाज
समान है, ६. उप्पयाणं व आसमपर्य,
(६) चतुष्पद-पशुओं के लिए आथय (स्थान) के
सभान ह. ५. बुट्टियागं व ओसहिबलं,
(७) दुःखों से पीड़ित रोगी जनों के लिए औषध-बल के
ममान है, ८. अस्वीमने व सत्यममणं,
(८) भयानक जंगल में सार्थ - संघ के साथ गमन करने के
समान है। एतो विसिद्धतरिया अहिंसा आ सा पुढवी-जल-अगणि-माश्य- (क्या भगवती अहिंसा वास्तव में जल, अन्न, औषध, यात्रा वणस्सइ-बीय-हरिय-जलयर थलयर-खहयरतस-थावर-सम्य- में सार्थ (समूह) आदि के समान ही है ? नहीं।) भगवती सूय-क्षेमंकरी।
अहिंसा इनसे भी विशिष्ट है, जो पृथ्वीकायिक, जलकायिक, --पण्ह. .२, अ. १, सु. ३ अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, बीज, हरितकाय,
जलचर, स्थलचर, खेचर, त्रस और रथावर सभी जीवों का क्षेम.
कुशल-मंगल करने वाली है। अहिंसा सवपस्वगा पालगाय
अहिंसा स्वरूप के प्ररूपक और पालक३२३. एसा भगवई अहिंसा का सा अपरिमिय-णाणसणधरेहि ३२३. यह भगवती अहिमा वह है जो अपरिमित-अनन्त केवल
सौल-गुण-विषय-तय-संयम-जायगेहि, तिस्थकरेहि सध्वजग- ज्ञान-दर्शन को धारण करने वाले, शीलरूप गुण, विनय, तप और जोववच्छलेहि तिलोयमहिएहि जिगवरेहि (निणंदेहि) संयम के नायक--इन्हें चरम सीमा तक पहुँचाने वाले, तीर्थ की सुविट्टा,
संस्शपना करने वाले प्रवर्तक, जगत के समस्त जीवों के प्रति वात्सल्प धारण करने वाले, त्रिलोक पूजित जिनवरों (जिनेन्द्रों) द्वारा अपने केवलज्ञान-दर्शन द्वारा सम्यक् रूप में स्वरूप, कारण
और कार्य के दृष्टिकोण से निश्चित की गई है। ओहिजिहि विष्णाया,
विशिष्ट अवधिशानियों द्वारा विज्ञात की गई है। अनुमईहि विविट्ठा,
ऋजुमति-मनःपर्यवज्ञानियों द्वारा देखी-परखी गई है। दिउसमाईहि विदिक्षा,
विपुलमति-मनःपर्यवज्ञानियों द्वारा ज्ञात की गई है। पुग्वधहि महीया,
चतुर्दश पूर्वश्रुत के धारक मुनियों ने इसका अध्ययन
किया है। बेसम्मोहि पतिण्णा,
वित्रिपाल धिधारकों मे इसका आजीवन पालन किया है। १. आमिनियोहियगरणीहि, २. सुषणाणोहि,
(१) आभिनिबोधिक-मतिज्ञानियों ने, (२) श्रुतज्ञानियों ने, ३. ओहिनाणीहि, ४. मणपशवणाणीहि, ५. केवलणामोहित (३) अवधिज्ञानियों ने, (४) मनःपर्यवशानियों ने, (५) केवल
ज्ञानियों ने, १. आमोसहिपत्तहि, २. खेलोसहिपसेहि, ३. विष्पोसहिपतेहि (१) आमाँषधिलब्धि के धारक, (२) श्लेष्मौषधिलब्धि के ४. अल्लोसहिपतहिं, ५. सम्योसहिपसेहि।
धारक, (३) विप्रौषधिलब्धि धारकों, (४) जल्लोषधिलब्धि
धारकों, (५) सौषधिलब्धिप्राप्त, १. बीयबुद्धीहि, २. कुमुखीहि, ३. पमाणुसारीहि, (१) बीजबुद्धि, (२) कोष्ठबृद्धि, (6) पदानुसारिद्धिसंभिग्णसोएहि. ५. सुपपरेहि ।
लन्धि के धारकों, (४) सम्भिन्नश्रोतस्तब्धि के धारकों, (५) श्रुतधरों ने।