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सूत्र ६७६-६७६
सर्वज्ञ ही सर्व अम्रवों को जानते हैं
चारित्राचार [ws
भलं कुसलस्स पमाणं, संतिमरणं सपेहार, मेरधम्म बुद्धिमान् पुरुष को प्रमाद से बचना चाहिए । शान्ति (मोक्ष) सपहाए । गालं पासं ।
और मरण (संसार) को देखने-समझने वाला (प्रमाद न करे) यह भारीर क्षणभंगुर धर्म (नाशमान) है, यह देखने वाला (पमाद
न करे)। अलं ते एतेहिं । एतं पास मुणि! महकाय ! णातिवातेग्न ये भोग (तेरी अतृप्ति की प्यास बुझाने में) समर्थ नहीं हैं। कंस।
यह देख । तुझे इन भोगों से क्या प्रयोजन है। हे मुनि ! यह -था. सु. १, म. २, ४,सु. ८४-८५ देख, ये भोग महान् भय रूप हैं। भोगों के लिए किसी प्राणी की
न करे।
आसक्ति-निषेध-४
सवण्णु एष सम्वास जाणइ
सर्वज्ञ ही सर्व आस्रवों को जानते हैं - ६७७. सर्व सोता, अहे सोता, तिरियं सोता वियाहिता । ६७७. ऊपर (आसक्ति) के स्रोत है, नीचे स्रोत हैं मध्य में स्रोत एसे सोता दिया जाता नहिं संग ति पासहा ॥ हैं । ये स्रोत कर्मों के आस्रवद्वार कहे गये हैं जिनके द्वारा समस्त
प्राणियों को आसक्ति पैदा होती है, ऐसा तुम देखो। आवट्टमेयं तु पहाण एव विरमेज बेववी ।
(रागढेष-कषाय-विषयावर्त रूप) भावावर्त का निरीक्षण
करके आगमविद् पुरुष उससे विरत हो जाये। विणएस सोतं निखम्म एस महं अकम्मा जाणति, पासति, विषयासक्तियों के या मानवों के स्रोत को हटाकर क्रिमण पहिलेहाए, गावखति । इह आगति गति परिणाय । करने वाला यह महान साधक अकर्म होकर लोक को प्रत्यक्ष -आ. सु. १, अ. ५, उ. ६, सु. १७४-१७६(क) जानता, देखता है । अन्तनिरीक्षण करने वाला साधक इस जोक
में संसार-प्रमण और उसके कारण को परिशा करके उनको
आकांक्षा नहीं करता। रह-णिसेहो
रति-निषेध६७८. विसच मणुन्स, पेमं नामिनिसए । ६८. शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श इन पुद्गलों के परिणमन अपि तेसि विनाय, परिणाम पोग्गलाण ॥ को अनित्य जानकर ब्रह्मचारी मनोश विषयों में संग मायन
करे। पोग्गलागपरिणाम, सेसि नच्चा बहा तहा।
इन्द्रियों के विषयभूत पुद्गलों के परिणमन को, जैसा है विगोरतम्ही विहरे, सीईभूएन अध्यणा ॥ वैसा जानकर अपनी आत्मा को उपशान्त कर तृष्णा-रहित हो
-वस. अ.८, गा. ५८-५९ विहार करे। अरब-णिसेहो
अरति-निषेध६७६. विरय मिक्यु रोयंत बिररातोसियं अरती तत्य कि विधा- १७६. चिरकाल से मुनिधर्म में प्रजित विरत और संयम में
गतिशील भिक्षु को क्या अरति दवा सकती है? संचैमा समुदित ।
(प्रतिक्षण आत्मा के साथ) संधान करने माने तथा सम्मक प्रकार से उत्थित मुनि को (बरति अभिभूत नहीं कर सकती।)
रए?