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धरणानुयोग
ओष्ठ परिकम के प्रायश्चित्त सूत्र
सूत्र५०४-५.५
ओट्टपरिकम्मस्सपायच्छित्त सुत्ताई५.४.जे भिक्खू अप्पणो उट्ठ
आमजेग्ज बा, पपज्ज वा,
आमज्जांबा, पमर्जत या साइग्जद ।
जे भिक्खू अप्पगो उ8संबाहेज्ज वा, पलिम ज्ज वा,
संवाहेत बा, पलिमहत या साइजह ।
गन्जू प्रयागो राष्ट्र तेल्लेण वा-जाद-पवणोएण वा, अमागेज्ज वा, मक्खेज्ज वा,
अम्मंगत वा, मवखंत वा साइजद । जे भिगवू अपणो उ?लोण वा-जाव-बण्ण वा, जालोलेज्ज वा, उव्वदृज्ज वा,
ओष्ठ परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र५०४. जो भिक्षु अपने होठों का--
मार्जन करे, प्रमार्जन करे, मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवावे,
मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे।
जो भिक्ष अपने होठों कामदन करे, प्रमर्दन करे, मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवावे, मर्दन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन करें। जो भिक्षु अपने होठों परतेल-यावत्--मक्खन, मले, बार-बार मले, मलचावे, बार-बार मलवाचे, मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करें। जो भिक्षु अपने होठों परलोध-यावद-वर्ण का, उबटन करे, बार-बार उबटन करें, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवाने,
उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे।
जो भिक्षु अपने होठों कोअचित्त शीत जल से या चित्त उष्ण जल से, धोये, बार-बार धोये, धुलवावे, बार-बार शुलवावे, घोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे। जओ भिक्षु अपने होठों कोरंगे, बार बार रंगे, रंगवावे, बार-बार रंगवावे, रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करे । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
उल्सोत वा, उम्वतं वा साइमा ।
जे भिक्खू अपणो ज?-- सीओदग-वियडेण वा, उसिणोग वियोण वा, उच्छोलेज वा, पधोएज्ज था,
उच्छोलतं वा, पधोएतं या साइज । जे मिवधू अप्पणो उ8फूमेज्ज वा, रएउज था,
फूमंतं वा, रयंतं वा साइज। तं सेवमाणे भावमह माप्तियं परिहारद्वान उपाहयं ।
–नि.उ. ३, सु. ५०.५५ उत्तरोट्टाइरोमाणं पायच्छित्त सुत्ताई५०५. जे भिक्खू अपणो वोहाई उत्सरोदु-रोमाई
उत्तरोष्ठादि रोम परिकों के प्रायश्चित्त सुत्र-- १०५. जो भिक्षु अपने लम्बे उत्तरोष्ट रोम
(होठ के नीचे के सम्बे रोम), काटे, सुशोभित करे, कटवावे, सुशोभित करवाने, काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे।
कप्पेवा, संवेज वा,
कतंबा, संठवतं वा साइज्जह ।