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चरणानुयोग
ने भिक्खू माजगामस्थ मेहूणषडियाए अणमण अच्छी
सरेओग वियण वा. उसिनोडग वियद्वेण था,
उच्छोलेज्ञ वा पोएम्ल वर
छोटा पीत वा साइ
ने मिक्लू माउणामस्स मेणवडियाए अण्णमण्णम्स अच्छोणि-
मेज पर एज वा
मनसे केसे परस्पर अभिपत्र परिकर्म के प्रायश्चित सूत्र
फूमेतं वा रतं वा साइज्य
आज चाउम्मानिय परिहारार्थ अग्रवाइये। - नि, उ. ७, सु. ५६.६९ मेहुणवडियाए अण्णमण्ग अच्छिपत्तपरिकम्मस्स पाय मृत
-
कम्पेज् वर, संवेज्ज व1,
कप्पेतं वा संठवेतं मा साइज्म ।
आज उम्मानिय परिहारार्थ अन्धादयं । - नि. उ. ७, सु. ५५ मेहुणवडिया अण्णमण्ण-मुमगाइ-रोमार्थ परिकम्मस्स पायच्छित सुत्ताई
६१३. जे मिक्स्यू माउग्गामस्स मनुणवडियाए अण्णमण्णस्स बीहाई मगरोमाई
वाडवेज बा
कप्पेतं वा संठवतं वा साइज ।
जे भिक्खू माउगामस मेहुणमडियाए मण्ण मरणस्स बोहाई पासरोमाई
कध्येज्ज वा संवेज्ज वा,
भिक्षु
६१२. मस्त मेहवडिया अभ्यास दहाई ६१२. जो माता के समान है इन्द्रियों जिसकी ऐसी स्त्री से) मैथुन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के लम्बे अक्षिपत्रों को
जे भिक्खू अच्छपत्ताई
कप्पे वा संहत वा सहन्न ।
तं सेवमाने आवाज चाउमालियं परिहारट्ठावं
६११-६१३
जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियों जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुनलेवन का संकल्प करके एक दूसरे की आँखों को
अचित्त शोत जल से या अचित्त उष्ण जल से, ये बार-बार
धूलदावे, बार-बार डुलवावे,
धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन व रे ।
जो मिक्ष माता के समान हैं इन्द्रियों जिसकी ( ऐसी स्त्री
से) मैदन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे की आंखों को रंगे, बार-बार रंगे,
रंगवावे, बार-बार रंगवावे,
रंगने वाले का, बार-बार रंगने वाले का अनुमोदन करें । से चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त)
आता है।
मैथुन सेवन के संकल्प से परस्पर अक्षिपत्रपरिकर्म के प्रायश्चित सूत्र-
काटे, सुशोभित करें,
कटवावे, सुशोभित करवाने,
काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे । उसे चातुर्मासिक अनुद्घानिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) आता है।
मैथुन सेवन के संकल्प से परस्पर भह आदि रोमों के परिकर्म के प्रायश्चित्त मूत्र
६१३. जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से) मैथुनका संकल्प करके एक दूसरे के भड़के लम्बे रोमों को
काटे, सुशोभित करें.
सुशोभित करवा
काटने वाले का, सुनोभित करने वाले का अनुमोदन करे । जोमा के समान है इन्द्रियों जिसकी ऐसी स्त्री सेन सेवन का संकल्प करके एक दूसरे के पके लम्बे रोमों को
काटे, सुशोभित करें,
गत करवाने,
काटने वाले का, सुशोभित करने वाले का अनुमोदन करे। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्वित)
- नि. उ. ७, सु. ६२-६३ आता है।