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पूष ६३०-६३१
मंथन सेवन के संकल्प से माला निर्माण करने के प्रायश्चित्त सूत्र
चारित्राचार.
(४२१
३. एगावली वा, ६. फेउराणि वा,
(३) एकावली, (6) केयूर-कंठा, ४. मुसायली वा, १.. कुण्डलाणि वा,
(४) मुक्तावली. (१०) कुण्डल, ५. कणगावली वा, ११. पट्टाणिवा,
(५) कनकावली, (११) पट्ट, ६. रयणावली या, १२. मउआणि वा,
(६) रत्नावली, (१२) मुकुट, ७. कड़गाणि दा, १३. पलंब-मुत्ताणि वा,
(७) कटि सूत्र, (१३) प्रलम्ब सूत्र, ८. तुहिशणि वा, १४. सुवण्ण-सुत्साणि वा, (6) भुजबन्ध, (१४) सुवर्ण सूत्र फरेइ. करेंतं वा साइज्जइ ।
करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए
जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियों जिसकी (ऐसी स्त्री से)
मधुन सेवन का संकल्प करकेहाराणि वा-जाव-सुवष्ण-सुत्साणि वा घरेइ, घरत या हार-यावत् - सुवर्ण सूत्र धरकर रखता है, रखवाता है, साहज्जा।
रखने वाले का अनुमोदन करता है। ने मिश्ख माजग्गामस्स मेहुणवडियाए ....
जो भिक्ष माता के समान हैं इन्द्रियों जिसकी (ऐसी स्त्री से)
मैथुन सेवन का संकल्प करकेहाराणि वा-जाव-सुवण्ण-सुत्ताणि वा परि जड़, परिझुंजत हार-यावत्-सुवर्ण सूत्र का परिभोग करता है, करवाता वा साइपमह।
है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजह नाजम्मासिय परिहारट्टाणं उग्धाइयं । उसे चातुर्मासिक अनुदातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-न. १. ७, सु. ७-६ आता है। मेहणयडियाए मालाकरणस्स पायच्छित्त सुत्ताई- मैथुन सेवन के संकल्प से माला निर्माण करने के प्राय
श्चित्त सूत्र६३१. जे भिक्षु माउग्गामस्स मेहणज्यिाए
६३१. जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री
से) मैथुन सेवन का संकल्प करके१. तण-मालियं , ८. संख-मालियं त्रा, (१) तृण की माला, (८) शंख को माला, २. मुंज-मालियं या, ६. हरा-मालियं वा, (२) मुंज की माला, (९) हड्डी की माला, ३. मिन-मालियं वा, १०. कट्ठ मालिय वा,
(३) बेंत की माला, (१०) काष्ठ की माला, ४. मषण-मालियं वा, . ११. पत्त-मालियं वर,
(४) मदन की माला, (११) पत्र को माला, ५. विच्छ-मालिय वा, १२. पुष्क-मालिय वा, (५) पीछ की माला, (१२) पुष्प की माला, ६. बत मालियं बा, १३. फल-मालिय बा, (६) दंत की माला, (१३) फल की माला, ७. सिंग मालियं वा, .धोज-मालियं वा, (७) सींग की माला, (१४) बीज की माला, १५. हरिय-मालियंका,
(१५) हरित (वनस्पति) की माला करे, करेंत वा साइज्जद।
करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्षू माउग्गामस्स मेहुणवरियाए--
जो भिक्षु माता के समान है इन्द्रियाँ जिसकी (ऐसी स्त्री से)
मैथुन सेवन का संकल्प करकेतणमालियं वा-जाब-हरियमालियं वा, घरे, परतं वा, तृण की माला-पावत्-हरित की माला घरकर रखता साज्जा
है, रखवाता है. रखने वाले का अनुमोदन करता है। ने भिक्खू माउग्गामस्त मेहण-बडियाए
जो भिक्षु माता के समान हैं इन्द्रियाँ जिसको (ऐसी स्त्री
से) मैथुन सेवन का संकल्प करकेसणमालिय वा जाव-हरिय-मालियं वा पिणटार पिणहत तृण की माला-मानव-हरित की माला पहनता है. पहनवा साइज्ज।
वाता है, पहनने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवजह चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अन्धाइयं। उसे चातुर्मासिक अनुपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि.उ.७, सु. १.३ आता है।