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सूत्र ५११-५१२
मस्तक रुकने का प्रायश्चित्त सूत्र
चारित्राचार
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सोसवारियं करणस्स पायच्छित्त सुतं
मस्तक ढकने का प्रायश्चित्त सूत्र५११. जे मिक्खू गामागुगाम दूइज्जमाणे अपणो सोसवारियं ५११. जो भिक्षु प्रामानुग्राम जाता हुआ अपने मस्तक को
ढकता है, करेइ, करें या साइज्जा ।
हकवाता है, और सकने वाले का अनुमोदन करता है । सं सेवमाणे आवज्जइ भासिय परिहारद्वाणं उग्धाइयं ।
उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ, ३, सु. ६६ आता है।
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परस्पर शरीर परिफर्म प्रायश्चित्त-२
अण्णमण्णस्सकाय परिकम्मरस पायच्छित्त सत्ताई५१२. जे मिक्ल अण्णमाणस कार्य
आमग्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा,
आमज्जंतं वा, पमजतं वा साइजह ।
जे मिक्खू अण्णमण्णस्स कम्यंसंबाहेज्ज वा, पलिमद्देन वा,
संबात वा, पलिमद्दतं वा साहज्जद ।
जे मिक्खू अण्णमण्णास कायंतेल्लेण वा-जावणवणोएण वा; मक्खेज्ज वा, मिलिगेज्ज था,
एक दूसरे के शरीर परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र - ५१२. जो भिक्षु एक दूसरे के शरीर का
मार्जन करे, प्रमार्जन करे, मार्जन करवावे, प्रमार्जन करवाये,
मार्जन करने वाले का, प्रमार्जन करने वाले का अनुमोदन करे।
जो भिक्षु एक दूसरे के शरीर कामर्दन करे, प्रमर्दन करे, मर्दन करवावे, प्रमर्दन करवावे,
मर्दन करने वाले का, प्रमर्दन करने वाले का अनुमोदन करे।
जो भिक्षु एक दूसरे के शरीर परतेल-यावत्-मक्खन, मले, बार-बार मले, मलवाये, बार-बार मलवादे, मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु एक दूसरे के शरीर परलोध-यावत्-वर्ण का, उबटन करे, बार-बार उबटन करे, उबटन करवावे, बार-बार उबटन करवावे,
उबटन करने वाले का, बार-बार उबटन करने वाले का अनुमोदन करे।
जो भिक्षु एक दूसरे के शरीर कोअचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, धोये, बार-बार धोये, धुलवावे, बार-बार धुलवावे, धोने वाले का, बार-बार धोने वाले का अनुमोदन करे।
मक्खेतं वा, मिलिगेस वा साइज्जद। में भिक्खू अण्णमण्णास कायं-- लोग्रेम या-जाव-वष्णेण वा, उहलोलेजवा, उध्वज था,
उल्लोलेतं वा, उस्वदृत वा साइम्सद ।
से मिक्खू अण्णमण्णास कार्यसोमोबग-वियांग था, उसिगोरग-वियत्रेण वा, उपछोलेज्ज था, पधोएर वा,
उच्छोलेत वा, पोएंत वा साइज्जइ ।