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सुष ३८६
अम्यतोषिक या गृहस्थ की गण्डादि की चिकित्सा के प्रायश्चित्त सूत्र
चारित्राचार
[२७३
सोजोबग विपडेल बा, उसिणग-बियडेगा,
छोलेता वर, धोएता वा, अण्णयरेणं आलेवणमाएणं, आलिज्ज बा, रिलिपेज वा,
आलिपतं वा, विलिपंतं वा सावद।
जे भिक्न अण्णउस्थियस्स बा, गारस्यियरस वा कार्यसिगई वा-जाव-मगंदलं वा, माणयरेन तिक्तेणं, सत्यजाएणं, आँच्छवित्ता वा, विञ्छिवित्ता वा, पूर्व था, सोगियं वा, नोहरेत्ता वा, विसोहेत्ताबा, सीओवग-वियन वा, उसिनोबग-वियोण वा, उच्छोलेसा वा, धोएसा वा, प्रणयरेणं आलेवणजाएणं, बासिपिता था, घिलिपित्ता वा, सेल्सेण वा-जाव-जवणीएण वा,
अचित्त शीत जल से गा अचित्त उष्ण जल से, धोकर, बार-बार धोकर, अन्य किसी एक लेप का, लेप करे, बार-बार लेप करे, लेप करवावे, बार-बार लेप करवावे,
लेप करने वाले का, बार-बार लेप करने वाले का अनुमोदन करे।
जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थों के शरीर केगण्ड-पावस--भगन्दर को, अन्य किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा, छेदन कर, बार-बार छेदन कर, पीप या रक्त को, निकाल कर, शोधन कर, अचिप्त शीत जल से या अपित्त उष्ण जल से, धोकर, बार-बार धोकर, अन्य किसी एक लेप का, लेप कर, बार-बार लेप कर, तेल-यावत्---मम्खन, मले, बार-बार मले, मलदावे, बार-बार मलवावे, मलने वाले का, बार-बार मलने वाले का अनुमोदन करे। जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थों के शरीर केगण्ड - बावस्क-भगन्दर को, अन्य किसी एक प्रकार के तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा, छेदन कर, बार-बार छेदन कर, पीप या रक्त को, निकाल कर, शोधन कर, अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से, धोकर, बार-बार धोकर, अन्य किसी एक लेप का, लेप कर, बार-बार लेप कर, तेल-यावद-मक्खन, मलकर, बारबार मलकर, अन्य किसी एक प्रकार के धूप से, घूप दे, बार-बार धूप दे, धूप दिलवावे, बार-बार धूप दिखबारे, धूप देने वाले का, बार-बार धूप देने वाले का अनुमोदन
अभंगेज्ज वा, मक्खेत वा, अग्भगतं वा, मक्वेत या साइजह । जे मिक्खू अण्णउत्यियस्स वा, गारत्थियस्स वा, कायंसिपंवा-जाव-भगंबलं का, अम्गयरेण सिक्वेणं सत्यजाएणं, छिदित्ता वा, विच्छिरित्ता वा, पूरं बा, सोणिय वा, मोहरेता वा, विसोहेत्ता वा, सोमोबग-बियाण या, उसिणोग-वियडेण वा, उच्छोलेसा वा, पधोएता वा, अग्णयरेणं आलेवणजाएणं, आलिपित्ता पा, पिलिपित्तावा, तेल्लेण वा-जाद-णवणीएणवा,
अमंगेत्ता वा, मरलेत्ताबा, • अण्णयरेणं धूबणजाएणं, धूवेज्ज वा. पधूवैज्ज वा,
पूर्वत वा, पतं वा साइम्जा।
करे।
तं सेवमाणे मावज्जह चाउम्मातियं परिहारद्वाजं अणुराय।
-नि.उ. ११, सु. २६-३४
उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।