________________
२२२]
परगानुयोग
ब्रह्मवर्ष के अनुकूल वय
सूत्र ४५९.४६१
बंभचेराणुकूला वय
ब्रह्मचर्य के अनुकूल वय४५६. तओ क्या पण्णता,
४५६. वम (काल-कृत अवस्था-भेद) सीन कहे गये हैंतं जहा -पढमे बए, मजिसमे बाए, पच्छिमे वए ।
यथा-प्रथमवय, मध्यमवप और अन्तिमवय । तिहि वएहिं आया फेवलं अंमचेरवासमावसेज्जा,
तीनों ही क्यों में आत्मा विशुद्ध ब्रह्मचर्यवास में निवास
करता है, सं जहा-पढमे वए, मसिमे वए, परिछमे बए।
यथा-प्रथम वय में, मध्यम वय में और अन्तिम बय में। -ठाणं. अ. ३, उ. २, सु. १६३ वंभचेराणकूला यामा --
ब्रह्मचर्य के अनुकूल प्रहर४६०. ती जामा पण्णसा,
४६०. तीन याम (प्रहर) कहे गये हैं -- तं जहा-पतमे जामे, मजिसमे जामे, पश्चिमे आमे । यथा-प्रथम याम, मध्यम याम और अन्तिम याम । तिहि जामेहि आया केवल बमचेरवासमावसेना,
तीनों ही यामों में आरमा विशुद्ध ब्रह्मचर्यवास में निवास
करता हैतं जहा~-पढमे जाम, मज्झिमे जामे, पस्छिो जामे । यथा-प्रथम याम में, मध्यम याम में और अन्तिम याम में ।
-आणं. . ..... संभचेरस्स उत्पत्ति अणुत्पत्ति य
ब्रह्मचर्य की उत्पत्ति और अनुत्पत्ति४६१. १०-असोनचा गं भते । केलिस वा-जाब-तपक्खिय. ४६१.प्र.-भन्ते ! केबली से-पावत् केवली पाक्षिक
जवासियाए वा केवलं धमचेरवास आवर जसा ? उपासिका से बिना सुने कोई जीव ब्रह्मचर्य पालन कर सकता है ? उ०-गोयमा ! असोचा णं केवलिस्स बा-जाव-सप्पविनय- उ०-गौतम ! केवली से - यावत्-केवली पाक्षिक उपा
उवासियाए वा अत्येत्तिए केवलं संभचेरवा माव- सिका से सुने बिना कई जीव ब्रह्मचर्य पालन कर सकते हैं और
सेज्जा, अस्थगत्तिए केवल बंपचेरवासं नो आवसेज्जा। कई जीब ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर सकते हैं। प०-से केपट्टणं भंते ! एवं बुबह
प्र०-भन्ते ! किस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता हैअसोच्श गं भंते ! केवलिम्स वा-जाव-तप्पक्खिय- केवली से - यावत् - केवली पाक्षिक उपासिका से सुने बिना उवासियाए का भरथेगत्तिए केवलं बंमधेरवासं मार- कई जीव ब्रह्मचर्य पालन कर सकते हैं और कई जीव ब्रह्मचर्य सेज्जा, अत्थेगसिए केवल बमचेस्वासं मो अस्वसेज्जा? पालन नहीं कर सकते हैं? -गोयमा ! जस्स गं परित्तावरणिज्जाणं कम्माणं खो- उ०..- गौतम ! जिसके चारित्रावरणीय कर्मों का क्षयोपशम वसमे कडे अवइ, से णं असोच्चा फेवलिस वा-जाव- हुआ है वह केदली से-यावत् - केवली पाक्षिक उपासिका से तप्पक्षियउवासियाए वा केवलं बंभरवास आवसेजा। सुने बिना ब्रह्मचर्य पालन कर सकता है। मस्सगं चरितावरणिजाणं कम्मा खोवसमे नो जिसके चारितावरणीय कमों का क्षयोपशम नहीं हुआ है कडे, भवइ, से गं असोवा केवलिस्स वा जाव-तप्पा वह केवली से-पावत्--केवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर क्षिपउवासियाए वा केवलं बंभचरवासं आवसेज्जा। भी ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर सकता है। से सेपट गं गोथमा एवं स्व
गौतम ! इस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता हैजस्स णं चरित्तावरणिज्जाणं कम्माणं खोषसमे नो जिसके चारित्रावरणीय कर्मों का क्षयोपशम हुआ है, वह कडे भवइ, से णं असोच्या केबलिस वा-जाव-तप्प. केवली से-पावत्-केवलि पाक्षिक उपासिका से सुने बिना क्विपउवासियाए वा केवल बमरवास नो आवसेज्जा । ब्रह्मचर्य पालन कर सकता है। -वि. स. ६,उ,३१, सु.१३ जिसके चारित्रावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हना है,
यह केवलि से-याव-केवलि पाक्षिक उपासिका से मुनकर भी ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर सकता है।
न तास वोपना नहीं हुआ है।