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क्षरणानुयोग
ब्रह्मचर्य महाव्रत के आराधन की प्रतिज्ञा
ह्मचर्य स्वरूप (9)
उभचे महत्ययस्स आराण-पणा४१०. हा महाम
चतुर्थ महात
सम्भन्ते मे कस्यामि से विश्वं वा माणूस मा तिरिख जोगिं वा ।
१.सुवा, कसते वा ब
[ मेपमा १२. बेल, ३. कालयो, ४. माओ ।
रामि । 1
२.
३. कालओ दिया वा रात्रो वा
४. भावनो रामेण वा प्रोसेन वा 1]
नेव सयं मेतृर्ण सेवेज्जा, मेवम्नेहि मेहुणं सेवामेउजा, मेगं सेवनेन समगुजारला जाबजवाए तिथि तिथि हे माया कारणं न करेमि न कारवेसि करत वि अन्नं न जानामि ।
बा. महोलोए वा सिरियलोए बा
| पविमामि निशान परिहामि अध्याग बोलि
घर सम्ते ! महाए उबडिओमि सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं -- अ. ४, सु. १४ अब महत्व पचपचामि सब ने
से दिव्यं था, माणसं या तिरिमखजोगियं वा न सयं मेव मे गच्छाविला, मेह गण समाजा
आजीबाए तिहिं तिविजानीतिरामि ।
चतुर्थ हाच महाव्रत के आराधन की प्रतिज्ञा४५० भन्ते ! इसके बाद चौथे महाव्रत में मैथुन को विरति होती है।
सूत्र ४५०
भन्ते ! मैं सत्र प्रकार के मैथुन का प्रत्याख्यान करता हूँ। [देव] सम्बन्धी मनुष्य सम्बना विर्यन सम्बन्धी
[ वह मैथुन भार प्रकार का है, जैसे- (१) द्रव्य से, (२) क्षेत्र से, (३) काल से, (४) भाव से 1
(१) द्रश्य से रूप में या रूप युक्त द्रव्य में,
(२) क्षेत्र से उतोक, या लोक वा तिलक में,
(३) काल से दिन में या रात्रि में,
(४) भाव से राग या द्वेष से । ] मेनका मैं स्वयं सेवन नहीं दूसरों से मैथुन सेवन नहीं कराऊंगा और मैथुन सेवन करने वालों का अनुमोदन भी नहीं करूँगा यावजीवन के लिए तीन कर तीन योग से मन से, वचन से, काया से न करूँगा, न कराऊँगा और करने वाले का अनुमोदन भी नहीं करूंगा ।
भन्ते । अतीत के मैथुन-सेवन से निवृत होता है, उसकी निन्दा करता हूँ, गहू करता हूँ और मैथुन से अविरत आत्मा की अतीत अवस्था का व्युत्सर्ग करता हूँ ।
भन्ते चौथे महाप्रत में उपस्थित हुआ है। इसमें स मैथुन की विरति होती है।
इसके बाद भगवन्! मैं चतुर्थ महावत स्वीकार करता हूँ इसके सन्दर्भ में समस्त प्रकार के मैथुन विषय सेवन का प्रत्यास्यान करता हूँ।
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देव सम्बन्धी मनुष्य सम्बन्धी और वियं योनि सम्बन्धी थुमका में स्वयं सेवन नहीं करूंगा व दूसरों से एतत् सम्बन्धी मैथुन सेवन कराऊँगा, और न ही मैथुन सेवन करने वालों का अनुमोदन होगा।
१ पिरई कामभोगमा उम्मरंभं धावदुक्करं ॥
यावज्जीवन तक तीन करण तीन योग से यह प्रतिज्ञा करता है याद अपनी आत्मा से मैथुन सेवन पाप का युव करता हूँ ।
-उत्त. अ. १९, गा. २६