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सत्र ४४६
बायतीविन
मायाले-म
द्वारा उसका परिहार
शारित्राचार
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अविरय-अप्पडिहय-अपहनक्खाय-पाबकम्मा-जाय--एगतबाला अनुमति देते हुए. विविध-त्रिविध से असंयत-अविरत-अनलिहतयावि भबह ।"
पापकर्म वाले और अप्रत्याख्यान पापकर्म वाले–याव-एकान्त
अज्ञानी हो। तएणते थेरा भगवन्तो ते अनस्थिए एवं बयासी
तत्पश्चात् स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीषिकों से इस
प्रकार पूछा-- "फेण कारण अज्जो ! अम्हे अदिन्नं गेहाओ, अदिन्न "हे आर्यो ! किस कारण से हम अदत्त ब्रहण करते हैं ? धुंजामो, अदिन्नं सातिजामो?"
अदत्त भोजन करते हैं ? अदन का स्वाद लेते हैं ? तए णं अम्हे अविन्न गहमाणा. अविन्न भुंजमाणा. अविन्न अदत्त का ग्रहण करते हुए अदत्त का भोजन करते हुए, सातिज्जमाणा सिविहं तिविहेणे अजय-अविरप-अपरिहय- अदत्त की अनुमति देते हुए, विविध-विविध से असंयत-अविरतअपच्चवाय-बावकम्माजाव-एगतबाला याषि भवामो ? पापकर्म के अनिरोधक, पापकर्म के अप्रत्यारुपान वाले-पावत्-.
एकान्त अज्ञानी भी हैं ?" तए गं ते अन्नउस्थिया ते धेरै भागवन्ते एवं बयासो
बाद में अन्यतीथिकों ने स्थविर मगवन्तों से इस प्रकार
कहा"तुम्हाणं अज्जो ! विज्जमाणे अबिन्ने, पडिगहेजजमाणे "हे आर्यों ! आपके मत में दिया जाता हुआ पदार्थ "नहीं अपडिमाहिए निसिरिज्जमाणे अणिसट्ट,
दिया", ग्रहण किया जाता हुआ पदार्थ "नहीं ग्रहण किया', पात्र में डाला जाता हुआ पदार्थ-"नहीं डाला गया" ऐसा
कधन है। तुभेण अज्जो! बिजमाणं पडिमालं असंपत्तं एत्थ हे आर्यों ! आपको दिया जाता हुआ पदार्थ, जब तक पात्र अंतरा केइ अवहरिज्जा, गाहाबइरस ण तं, मो खलु तं सुम्भ, में नहीं पड़ा तब तक बीच में से ही कोई उसका अपहरण कर तइ गं तुन्भे दिन्नं गेण्हह, अदिन्नं भुजह, अदिन्नं सातिजह ले तो तुम कहते हो-"वह उस गृहाति के पदार्थ का अपहरण "तए गं तुम्भे अविन्नं गेव्हमाणा, अदिन्न भुजमाया, अदिन्नं हुआ", "तुम्हारे पदार्थ का अपहरण हुआ" ऐसा तुम नहीं कहते । साति जनाणा-जात्र-एगंतवाला यावि भयह ।'
इस कारण से तुम अदत्त का ग्रहण करते हो, तुम अदत्त का भोजन करते हो, अदत्त की अनुमति देते हो, अतः तुम अदत्त का ग्रहण करते हुए, अदत्त का भोजन करते हुये, अदत्त की अनुमति
देते हुए-~~यावत्-एकान्त अज्ञानी हो ।' सए गं ते येरा भगतो ते अनस्थिए एवं वासी
तदनन्तर म्यविर भगवनों ने उन अन्यतीथिको को इस
प्रकार कहा"नो खतु अज्जो ! अम्हे अपिन्न गिहामो, अदिन भुजामो, हे आर्यो ! हम अदन ग्रहण नहीं करते, अदत्त भोजन नहीं अविन्न सातिजामो, अहे 4 अज्जो! दिन्नं गेल्हामो, बारते, अदन की अनुमोदना नहीं करते, हम दत (दिया हुआ) बिस्ने झुंजामो, दिन्नं सातिज्जामो।"
ग्रहण करते हैं, दत का भोजन करते हैं, दत्त की अनुमोदना
करते हैं। तए णं अम्हे दिन्नं गेहमागो, बिम्न भुममाणा, बिन्नं अतः हम दत को ग्रहण करते हुए, दत्त का भोजन करते सातिज्जमाणा तिविहं सिविहेणं संजप-विरय-परिय-ग्रुच- हये, दल का अनुमोदन करते हुए, त्रिविध-त्रिविध संयत-विरत,
खाप-पावकम्मा, अकिरिया, संखुडा, एगंत अवंशा, एगत- पारकर्मों के निरोधक, पापकर्मों के प्रत्यास्थान किये हुए, निया पंधिया पावि मवामो।
रहित-संवृत, एकान्त अहिंसक, एकान्त ज्ञानी हैं।" तए गं ते अन उत्थिया ते येरे भगवते एवं बधासी
तत्पश्चात उन अन्यतीथिकों ने स्थविर भगवन्तों इस
प्रकार पूछा"केण कारणेणं अज्जो ! तुम्हे दिग्नं गेण्हह, चिन्नं मुंजह हे आर्यों | किस कारण से तुम दत्त ग्रहण करते हो, दत्त दिन्नं सातिज्जह," सए णं तुरमे दिन्नं गेण्हमाणा-जावरगत- भोजन करते हो, दत्त की अनुमोदना करते हो, दत्त ग्रहण करते पंडिया पावि मवह ।
हुए-यावत्-एकान्त ज्ञानी हो ?