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सूत्र ३३६-३३७
वायुकायिक जीवों को हिंसा का निषेध
मरित्राचार
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सिएम बियाणे वा तालियों का पसंण का पत्त- चामर, पंखे, बीजन, पत्र, पत्र के टुकड़े, शाखा, शाखा के मंगेण बा साहाए वा साहामगेण वा पिहुणेण वा पिहुणहत्येष टुकड़े, मोर पंख, भोर-पिच्छी, बस्त्र, वस्त्र के पल्ले. हाथ या मा चेसेज वाचेलकण्णण या हत्येण वा मुहेण वा अप्पगो मुंह से अपने शरीर अथवा बाहरी पुद्गलों को फूंक न दे, वा कार्य बाहिरं वा वि पोग्गल, न फुसेम्जा न कोएज्जा, हवा न करे। अन्नं न फुसावेज्ना न वीयावेज्जा,
दूसरों से फूक न दिलाए, हवा न कराए; अन्नं फुसतं वा बोयंत वा न समजाणेम्जा' मावीचाए फूक देने वाले या हवा करने वाले का अनुमोदन भी न करे, तिविहं तिविहेणं मणणं वायाए काएगं न करेमि न कारमि यावज्जीवन के लिए, तीन करण तीन योग से-मन से, वचन से, करत पि अन्न न समणुजाणामि ।
काया से,-न करूंगा, न कराऊँगा और करने वाले का अनुमोदन
भी नहीं करूंगा। तस्स मंसे ! परिक्कमामि निदामि गरिहामि अप्पान बोसि- भन्ते ! मैं अतीत के वायु-समारम्भ से निवृत्त होता हूँ, समि।
उसकी निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ और (कपाय) आत्मा का
- दस. अ. ४, सु. २१ व्युत्सर्ग करता हूँ। वाजकाइयाणं हिंसा निसेहो
वायुकायिक जीवों की हिंसा का निषेध३३७. सम्ममाणा पुढो रास । "अणगारा मो" सि एगे पदमागा, ३३७. तू देत ! संयमी साधक जीव हिंसा में लज्जा, ग्लानि-संकोच
अमिण विरुवस्वेहि सत्थेहि वाउम्मसमारंभेणं बाउसत्वं का अनुभव करते हैं। और उनको भी देख, जो "हम गृहत्यागी समारम्ममाणे अण्णेवऽभेगल्वे पागे विहिसति ।
है" यह कहते हुए भी अनेक प्रकार के उपकरणों से वायुकाय का समारम्भ करते हैं । वायुकाय को हिंसा करते हुए वे अन्य अनेक
प्राणियों की भी हिंसा करते हैं। तस्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता
इस विषय में भगवान ने परिजा-विवेक का प्ररूपण किया है। इमरस व जीवियस्म परिवंदण-माणण-यूयणाए, माई-मरण- कोई मनुष्य इस जीवन के लिए, प्रशंसा, सम्मान, पूजा के मोपगाए, बुक्सपरिधातहेतुं
लिए, अन्म-मरण और मुक्ति के लिए, दुःख का प्रतिकार करने
के लिए, से सममेव वाजसा समारभति, अण्णेहिं या वाजसत्थं समा- स्वयं भी वायुकायिक जीवों की हिंसा करता है, दूसरों से रमावेति, अण्णे वा बाउसस्थ समारभते समजामति । करवाता है, तथा हिंसा करते हुए का अनुमोदन भी करता है। से अहियाए, तं से अबोधीए।
यह हिंसा उसके हित के लिए होती है। अबोधि के लिए
होती है। से सं संबुज्झमागे, आयाणोयं समुहाए,
___ वह संयमी, उस हिसा को–हिंसा के कुपरिणामों को
सम्यक् प्रकार से समझते हुए संयम में तत्पर हो जाये। सोचा भगवओ, अणगाराणषा अंतिए हमेगैसिं गातं भवति भगवान से या गृहत्यागी श्रमणों के समीप सुनकर कुछ -एस खसु गये, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु मनुष्य यह जान लेते हैं कि यह हिसा प्रन्थि है, यह मोह है, यह गिरए।
मृत्यु है, यह नरक है। वरथं गलिए सोए।
फिर भी मनुष्य हिंसा में आसक्त होता है। अमिण विरूवरूहि सत्येहिं बाउकम्म-समारंभेणं वाजसत्थं बह नाना प्रकार के शस्त्रों से वायुकायिक जीवों का समासमारम्भमाणे मण्णेवागमधे पाणे विहिंसति ।
रम्भ करता है। वह न केवल वायुकायिक जीवों की हिंसा करता है अपितु अन्य अनेक प्रकार के जीवों की भी हिसा करता है।
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१ वालियंटेण पत्र्तण, साहावियोण वा । न बीएजज अप्पणो कार्य, बाहिरं वा वि पोग्गल ।
-वस.अ. ८, गा.६
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