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सूत्र ३२१-३१२
भगवती अहिंसा को अठ उपमाएँ
चारित्राचार
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४२. संबरोय.
(४२) संवर–आस्रव का निरोध करने वाली । ४३. गुस्ती,
(५६) गुप्ति-मन, बचन, काय की असत् प्रवृत्ति को
रोकना। ४४, ववसाओ,
() व्यवसाय-विशिष्ट-उत्कृष्ट निश्चय रूप । ४५. उस्सओ.
(४५) उच्छ्य-प्रणास्त भावों की उन्नति-वृद्धि समूदाय। ४६. जन्नो,
(४६) यज्ञ-भाव देवपूजा अथवा यन-जीव रक्षा में
सावधानतास्वरूप। ४७. आयतणं,
(४७) आयतन -समस्त गुणों का स्थान । ४८. जमणं,
(४८) यतना-माद–लापरवाही आदि का त्याग । ४६. अप्पमाओ,
(४६) अप्रमाद-मध, विषय, कषाय, निद्रा और विकया
रन पोर माटों का त्याग । ५०. अस्साओ,
(५०) आश्वासन-प्राणियों के लिए आश्वासन-तवल्ली । ५१. विसासो,
(५१) विश्वास-समस्त जीवों के विश्वास का कारण । ५२. अप्रमो,
(५२) अभय-प्राणियों को निर्भयता प्रदान करने वाली,
स्वयं आराधक को भी निर्भय बनाने वाली। ५३. सबम बिअमाधाओ,
(५३) सर्वस्व अमावात-प्राणिमात्र की हिमा का निषेध
अथवा अमारी-घोषणा स्वरूप । ५४. धोक्य,
(५४) चोक्ष-चोखी, शुद्ध, भली प्रतीत होने वाली। ५५. पबित्ता,
(५५) पवित्रा-अत्यन्त पावन-वन सरीखे घोर आघात से
भी त्राण करने वाली। ५६. भूई,
(५६) शुचि-भाव की अपेक्षा शुद्ध-हिंसा आदि मलीन
भावों से रहित, निस्कलंक । ५७. पूजा,
(५७) पूजा-पूजा, विशुद्ध या भाव से देवपूजा रूप । ५८. विमल,
(५८) विमला-स्वयं निर्मल एवं निर्मलता का कारण । ५९. पमासा या
(५६) प्रभासा- आत्मा को दीप्ति प्रदान करने वाली,
प्रकाशमय । ६०. निम्मलयर ति
(६०) निर्मलतरा-अत्यन्त निर्मल अथवा आत्मा को
अतीच निर्मल बनाने वाली। ' एमावीणि निययगुणमिम्मियाई पक्णवनामाणि होति, अहिंसा भगवती के (पूर्वोक्त तथा इसी प्रकार के अन्य) हिसाए मगवतोए।
इत्यादि स्वगुण निष्पन्न (अपने गुणों से निष्पन्न हुए) पर्यायवाची --पण्ह सु०२, अ०१, सु०२ नाम हैं। अहिंसा भगवईए अट्ठोवमा
भगवती अहिंसा की आठ उपमाएँ३२२. एसा सा भगवई अहिंसा,
३२२. यह अहिंसा भगवती जो है। सो... 1.47 सा भीपाण विव सरगं,
(१) (संसार के समस्त) भयभीत प्राणियों के लिए शरणभूत है, २. पाखीण विव गमगं,
(२) पक्षियों के लिए आकाश में गमन करने (उड़ने) के
समान है, ३. तिसिशर्ग दिख सलिल,
(३) यह अहिंसा प्यास से पीड़ित प्राणियों के लिए जल के समान है,
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