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घरणानुयोग
भूतधर के प्रकार
सूत्र १११
अहा से चाउरन्ते, चश्कबट्टी महिडिहए।
जिस प्रकार महान् ऋदिशाली, चतुरन्त चक्रवर्ती चौदह चउपसरयणाहिबई , एवं हबइ बहुस्सुए ॥ रत्नों का अधिपति होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत चतुर्दश पूर्वधर
होता है। जहा से सहसवलं. माटो पुरन्दरे ।
जिस प्रकार सहनचक्षु, वचपाणि और पुरों का विदारण सक्के वाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ करने वाला शक देवों का अधिपति होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत
देवी (श्रुत) सम्पदा का अधिपति होता है। जहा से तिमिरविवसे, उसिटुन्ते दिवायरे ।
जिस प्रकार अन्धकार का नाश करने वाला उगता हुआ जलम्ते इव तेएण, एवं हवइ बहुस्सुए ।।
सूर्य तेज से जलता हुआ प्रतीत होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत तप
के तेज से जलता हुआ प्रतीत होता है। जहा से उड़बई चन्दे, नवमतपरिवारिए ।
जिस प्रकार नक्षत्र-परिवार से परिवृत ग्रहपति चन्द्रमा परिपुणे पुण्णमासीए, एवं हवइ बहुस्सुए।
पूर्णिमा को प्रतिपूर्ण होता है, उसी प्रकार साधुओ के परिवार से
परिबूत बहुथुत सकल कलामो में परिपूर्ण होता है। जहा से सामाइयाणं, कोडागारे सुरपिखए।
जिस प्रकार सामाजिकों (समुदाय वृत्ति वालों) का कोष्ठानाणाधनपरिपुणे । एवं हवद बहुस्सुए। गार सुरक्षित और अनेक प्रकार के धान्यों से परिपूर्ण होता है,
उसी प्रकार बहुश्रुत नाना प्रकार के श्रुत से परिपूर्ण होता है। जहा सा खुमाण पथरा. जम्मू नाम मुसणा ।
जिस प्रकार अनाधृत देव का आश्रय सुदर्शन नाम का अगाबियस्त देवस्स, एवं हा बहुस्सुए। जम्बु वृक्ष सब वृक्षों में श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत सब
साधुओं में श्रेष्ठ होता है। जहा सा नईण पबरा, सलिला सागरंगमा।
जिस प्रकार नीलवान् पर्वत से निकलकर समुद्र में मिलने सोया नीलवन्तपबहा, एवं हवह पहुस्मए ।।
वाली शीता नदी शेष नदियों में श्रेष्ठ है, उसी प्रकार बहुश्रुत
सव साधुओं में श्रेष्ठ होता है। अहा से नगाण पयरे, सुमह मन्दरे गिरी।
जिस प्रकार अतिशय महान् और अनेक प्रकार की औषनागोसहिपज्जलिए , एवं हवइ बहुस्सुए ।।
धियों से दीप्त मन्दर पर्वत सब पर्वतों में थेष्ठ है, उसी प्रकार
नहुश्रुत सब साधुओं में श्रेष्ठ होता है। जहा से सयंभूरमणे, वही अपसओदए ।
जिस प्रकार अक्षय जल पाला स्वयंभूरमण समुद्र अनेक नाणारयणपडिपुण्णे , एवं हवा बहुस्सुए।
प्रकार के रत्नों से भरा हुआ होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत
अक्षय ज्ञान से परिपूर्ण होता है। समुद्दगम्भीरसमा दुरासया,
समुद्र के समान गम्भीर, दुराशय (कष्टों से अबाधित), अचक्किया केणइ दुष्पहंसथा।
अभय, किसी प्रतिबादी के द्वारा अपराजेय, विपुलश्चत से पूर्ण सुयस्स पुष्पा विउलस्स ताइयो,
और त्राता बहुत मुनि कर्मों का क्षय करके उत्तम गति (मोक्ष) सवित्त कम्मं गइमुत्तमं गया ।
में गये। तम्हा सुयमहिज्जा , उसमढगवेसए ।
इसलिए उत्तम-अर्थ (मोक्ष) की गवेषणा करने वाला मुनि जेणापाणं परं चेय, सिवि संपाउणेग्जासि ।। श्रुत का आश्रयण करे, जिससे वह अपने आपको और दूसरों को
-उत्त. अ. ११, गा. १५-7 सिद्धि (मुक्ति) की प्राप्त करा सके । अबहुस्सुय सरूवं
अबहुथुत का स्वरूप१६२. जे यावि होह निग्विज्जे, बसे सुसे अणिगहे।
१६२. जो विद्याहीन है, विद्यावान् होते हुए भी जो अभिमानी अभिक्खणं उल्लघई, अविणीए, अबगुस्सुए ॥ है, जो सरस आहार में लुब्ध है, जो अजितेन्द्रिय है, जो बार
--उत्त, अ. ११,गा. २ बार असम्बद्ध बोलता है, जो अविनीत है, वह अबहस
कहलाता है।