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मूत्र २७६
अठठ पुण्डरीक को पाने में असफल चार पुरुष
बर्शनाचार
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मए णं से परिमे तं पुरिरांग नामो- अहोई मे पुरिसे तदनन्तर दक्षिण दिशा से आये हुए इस दूसरे पुरुष ने उस असेयणे अकुसले अपंडिते अवियत्ते अमेहावो चाले जो पहले पुरुष के विषय में कहा कि--"अहो ! यह पुरुष खेदज्ञ मग्गस्थे गो मग्य बिक णो मागस्स गतिपरक्कमण्णू (मागंजनित खेद-परिश्रम को जानता) नहीं है, (अथवा इस क्षेत्र
का अनुभव नहीं है,) यह अकुशल है, पण्डित नहीं है, परिपक्व बुद्धिवाला नहीं है, यह अभी बाल-शानी है। यह सत्पुरुषों के मार्ग में स्थित नहीं है, न ही यह व्यक्ति मार्गबेता है । जिस मार्ग से चलकर मनुष्य अपने अभीष्ट उद्देश्य को
प्राप्त करता है, उस मार्ग की गतिविधि तथा पराकम को पह जं गं एस पुरिसे "लेयन्ने कुसले-जाव-पउमवरपोंडरौयं नहीं जानता । जैसा कि इस व्यक्ति ने यह ममझा था कि मैं बड़ा उनिश्खेरसामि",
खेदज या क्षेत्रज्ञ हूँ, कुशल हूँ, यावत्-पूर्वोक्त विशेषताओं से
युक्त हूँ, मैं इस पुण्डरीक को उखाड़कर ले जाऊँगा, जो य वस्तु एतं पउमवरपोजरो एवं उनिक्लेयस्वं जहा मं किन्तु यह पुण्डरीक इस तरह उखाड़कर नहीं लाया जा एस पुरिसे मन्ने ।
सकता जैसा कि यह व्यक्ति समझ रहा है। अहमसि पुरिसे खेयण्णे फुसले पटिए वियत्त मेहावो अबाले "मैं खेदज्ञ (या क्षेत्र) पुरुष हूँ, मैं इस कार्य में कुशल हूँ, मगत्ये मग्गविऊ मागरस गतिपरक्कमष्णु अहमेयं पजमवर. हिताहित विज्ञ हूँ, परिपक्ववुद्धिसम्पन्न प्रौढ़ हूँ, तथा मेधावी हूँ, पौडरीयं उनिक्खिस्सामि त्ति कटु इति वच्चा से पुरिसे मैं नादान बेच्चा नहीं हूँ, पूर्वज सज्जनों द्वारा आचारित मार्ग अभिकम्मे तं पुक्खणि,
पर स्थित हूँ, उरा पथ का ज्ञाता हूँ, उस मार्ग की गतिविधि और पराक्रम को जानता हूँ। मैं अवश्य ही इस उत्तम श्वेतकमल को उखाड़कर बाहर निकाल लाऊँगा, (मैं ऐसी प्रतिज्ञा करके
आया हूँ) यों कहकर वह द्वितीय पुरुष उस पुष्करिणी में उतर गया । -जाव-जावं च णं अभिकम्मे ताव तावं च णं महते उदए महते ज्यों-ज्यों वह आगे बढ़ता गया, त्यों-त्यों उसे अधिकाधिक सेए. पहीणे तौर, अप्पत्तै एउमवरपोखरीयं, गो हस्बाए णो कीचड़ और अधिकाधिक जल मिलता गया। इस तरह वह भी पाराए, अंतरा सेयंसि विसपणे दोषचे पुरिसजाते। किनारे से दूर हट गया और उस प्रधान पुण्डरीक कमल को भी -सूय. मु. २, अ.१. सु. ६४० प्राप्त न कर सका। यों वह न इस पार का रहा और न उस
पार का रहा । वह पुष्करिणी के बीच में ही कीचड़ में फंसकर
रह गया और दुःखी हो गया। यह दुसरे पुरुष का वृत्तान्त है। अहावरे सच्चे पुरिसजाते।
___ इसके पश्चात् तीसरे पुरुष का वर्णन किया जाता है। अह पुरिसे पचत्यिमाओ विसाओ आगम्म तं पुषणरणि तोसे दूसरे पुरुष के पश्चात् तीसरा पुरुष पश्चिम दिशा से उस पुस्खरिणीए तोरे तिच्या पासति तं मह एग पउमवरपुण्डरियं पुष्करिणी के पास आकर उसके किनारे खड़ा होकर उस एक अणुपुत्रविय-जाव पहिवं,
महान् श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल को देखता है, जो विशेष रचना से
युक्त-यावत्-पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त अत्यन्त मनोहर है। ते तत्थ बोणि पुरिसज्जाते पासति पहीणे तौर, अप्पत्ते वह वहाँ (उस पुष्करिणी में) उन दोनों पुरुषों को भी देखता है, पउमवरपोखरीय, णो हत्याए पो पाराए, -जाद-सेयंसि जो तीर से भ्रष्ट हो चुके हैं और उस उत्तम श्वेतकमल को भी निसष्णे।
नहीं पा सके, तथा जो न इस पार के रहे और न उस पार के रहे, अपितु पुष्करिणी के अधबीच में अगाध कीचड़ में ही फंस
कर दुःखी हो गये थे। तसे गं से पुरिसे एवं वासी
इसके पश्चात् उस तीसरे पुरुष ने उन दोनों पुरुषों के लिए महो गं इमे पुरिसा अखेसन्ना अफुसला अपंडिया अवियत्ता इस प्रकार कहा-"अहो ! ये दोनों व्यक्ति स्वेदज्ञ या क्षेत्रश नहीं अमेहावी बाला णो मग्गत्था
है, न पण्डित हैं, न ही प्रोड-परिपक्वबुद्धिवाले हैं. न ये बुद्धिमान हैं, ये अभी नादान बालक से हैं, ये साध पुरुषों द्वारा आचा
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