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घरगामुयोग
चार प्रकार की विनय-प्रतिपसि
सूत्र ११०
बिणयास मूलोयमा
विनय को मूल की उपमा१०६, मूलामो बंधप्पभवो मस्स,
१०६. वृक्ष के मूल से स्कन्ध उत्पन्न होता है, स्कन्ध के पश्चात् खंधाओ पस्छा समुर्वेति साहा ।
शाखाएँ आती हैं, और शालाओं में से प्रशाखाएं निकलती है। साहप्पसाहा विहंति पत्ता,
उसके पश्चात् पत्र, पुष्य, फल और रस होता है । तओ से पुष्पं फलं रसोय ॥ एवं धम्मस्स विणओ मूलं,
इसी प्रकार धर्म का मूल है 'विनय' (आचार) और उसका परमो से मोक्यो ।
परम (अन्तिम) फल है मोक्ष । विनय के द्वारा मुनि कीर्ति, जेण किमि मुर जि.
लावलीय श्रुत और समस्त इष्ट तत्वों को प्राप्त होता है। निस्सेसं चाभिगच्छई ।।
-दस. अ. ६, उ.२, गा.१२ आयरियल्स विणय-पडिवत्ती
आचार्य की विनय-प्रतिपत्ति११०. आयरिओ अंतेवासी इमाए चउबिहाए विणण-पजिवतीए ११०. आचार्य अपने शिष्यों को यह चार प्रकार की विनयविणता भवद निरणितं गच्छा तं जहा
प्रतिपत्ति सिखाकर अपने ऋण से उऋण हो जाता है । जैसे१. आयार-विणएणं, २. सुयं-विणएणं,
आचार विनय, श्रुतबिनय, ३. विमलेवणा-विणएणं, ४. बोस-निग्घायणा-विणएणं । विक्षेपणाविनय और दोष-नितिनाविनय । प०-से कितं आयार-विणए?
प्र.-भगवन् ! वह आचारविनय क्या है। उ.--आयार-विणए चविहे पणते । तं जहा .
उ.--आचारविनय चार प्रकार का कहा गया हैं। जैसे१. संयम-सामायारी यावि भवइ,
१. संयमसमाचारी-संयम के भेद-प्रभेदों का ज्ञान कराके
आचरण कराना। २. तव-सामाधारी यावि भवइ,
२. तपःगमाचारी-तप के भेद-प्रभेदों का शान कराके
आचरण कराना। ३. गण-सामायारी यादि भवई,
३. गणसमाचारी-साधु-संघ की सारण-वारणादि से रक्षा करना, रोगी दुर्बल साधुओं की योचित व्यवस्था करना, अन्य
गण के साथ यथायोग्य व्यवहार करना और कराना। ४. एकल्ल-विहार-सामायारी भाषि मवह ।
१. एकाकी विहार समाचारी-किस समय किस अवस्था
में अकेने विहार करना चाहिए, इस बात का शान कराना । से तं आयार-विणए।
यह आचारविनय है। प.-से कि तं मुय-विणए ?
प्र-भगवन् ! श्रुतविनय क्या है ? ज०-सुप-विणए चविहे पणतं । तं जहा
उ.- श्रुतविनय चार प्रकार का कहा गया है । जैसे१. सुत्तं वाएइ,
१. सूत्रवाचना-मूल सूत्रों का पड़ाना । २. अस्थं वाएइ,
२. अर्थवाचना-सूत्रों के अर्थ का पढ़ाना। ३. हियं वाएइ,
३. हितवाचना-शिष्य के हित का उपदेश देना । ४. निस्सेसे पाएइ,
४. निःशेषवाचना-प्रमाण नय, निक्षेप, संहिता, पदच्छेद, पदार्थ, पद-विग्रह, चालना (शंका) प्रसिद्धि (समाधान) आदि के
द्वारा सूवार्च का यथाविधि समग्र अध्यापन करना-कराना । से तं सुप-विणए।
यह श्रुतबिनय है।