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सूत्र ६५
संपतादि की धर्मादि में स्थिति
धर्म-प्रज्ञापना
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२. असंजय-अविरय-अपजिलय-अपश्चक्त्राय-पावकम्मे (२) असंयत---प्राणातिपातादि से अविरत, जिमने प्राणातिअधम्मे ठिए ।
पातादि पापकर्मों का प्रतिघात और प्रत्यास्यान नहीं किये हैं
ऐसा जीव अधर्म में स्थित है। ३. संजयासंजए धमाधम्मे लिए ॥१॥
(३) संयत-असंवत जीव धर्माधर्म में स्थित है। ५०–एएसि गं भते ! धम्मसि वा, अहम्मसि वा, धम्मा- प्र०-हे भदन्त ! धर्म में, अधर्म में, धर्माधर्म में कोई भी
धम्मसि वा, चरिकमा केह आसत्तए पा, सइत्तए वा, जीव बैठना, सोना, खड़ा रहना, नीचे बैठना-करवट बदलना
चिट्टित्तए वा, निमीदिसए बा, तुट्टित्तए वा? आदि क्रिया कर सकता है? उ.-गोयमा ! णो तिण? सम? ॥२॥
उ०—गौतम ! यह अर्थ तर्कसंगत नहीं है। ५०-से केयं खादं अटुण मंते ! एवं बुभबई
प्र०-(१) हे भदन्त ! किस प्रसिद्ध प्रयोजन से ऐसा कहा
जाता है ? :. संजीह नाय - पावर इम्मे (१) संयत, प्राणातिपातादि से विरत, जिसने प्राणातिपातादि हिए?
पापकों का प्रतिचात और प्रत्याख्यान किये हैं-ऐसा जीव
अधर्म में स्थित है ? २. असंजय-अविरय-अपरिहय-अपवक्ताप - पावकम्मे (३) अर्मयत—प्राणातिपातादि मे अविरत -जिसने प्राणाअधम्मे ठिए?
तिपातादि पाप कर्मों का प्रतिषास और प्रत्यार यान नहीं किये
हैं -ऐसा जीव अधर्म में रिक्त है ? ३. संजपासंजए धम्माधम्मे ठिए ?
(३) संथता संयत धर्माधर्म में स्थित है ? उ.---१. गोयमा ! संजय-विरय पहिय-परचक्खाय - पाव- उ०-(१) गौतम ! संयत--प्राणातिपालादि से विरत--
कम्मे धम्मे ठिए, धम्म चेव वसंपज्जिताणं जिसने प्राणातिपातादि पापकर्मों का प्रतिघात और प्रत्याख्यान बिहरह
किये है- ऐसा जीव धर्म में स्थित है क्योंकि धर्म को ग्रहण
कर विहरता है (न्यवहार) करता है। २. असंजय-अविरय-अपडिहय अपचक्खाय-पानकम्मे (२) असंयत-प्राणातिपातादि से अविरत-जिसने प्राणातिअधम्मे ठिए, अधम्म चेव उवसंपज्जित्तागं विहरत, पातादि पापकर्मों का प्रतिघात और प्रत्याख्यान नहीं किये हैं
ऐसा जीव अधर्म में स्थित है, क्योंकि अधर्म को ग्रहण कर
विहरता है (ब्बवहार करता है)। ३. संजयासंजए धमाधम्मे ठिए, धमाधम्म उब- (३) संवतासंयत जीव धर्म-अधर्म में स्थित है, क्योंकि धर्मसंपन्जित्ताणं विहर
अधर्म ग्रहण कर व्यवहार करता है, से तेणट्ठणं गोयमा !
इस प्रयोजन से गौतम ! संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय • पावकम्मे धम्मे संयत -प्राणातिपातादि से विरत -जिसने प्राणातिपातादि ठिए ।
पापकर्मों का प्रतिघात और प्रत्याख्यान किये हैं-ऐसा जीव धर्म
में स्थित है। असंजय-अविरय-अपव्हिय-अपच्चक्खाय-पावकम्मे असंयत-प्राणातिपातादि से अविरत-जिसने प्राणातिपातादि अधम्मे लिए।
पापकर्मों का प्रतिघात और प्रत्यान्यान नहीं किया है-ऐसा
जीव अधर्म में स्थित है। संजयासंजए धमाधम्मे थिए ।३।।
संयतासंयत धर्माधर्म में स्थित है। प०-जीवा गं मते ! फि धम्मे ठिया 7 अधम्मे ठिया? प्र भदन्त ! जीव धर्मस्थित हैं? अधर्मस्थित हैं ? धम्माधम्मे ठिया?
धर्माधर्मस्थित है ? 3०-गोयमा जीवा धम्मे विलिया, अधम्म विठिया, 3-गौतम ! जीव धर्मस्थित भी हैं, अधर्मस्थित भी हैं, धम्माधम्मे विठिया
धर्माधर्मस्थित भी है।