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[४२] ४४-अभीके आग्रही जनोंकी मलीन बुद्धि व
सम्यक्त्वी मिथ्यात्वीकी परीक्षा. कोईभी वाद विवादके विषयकी चर्चा करनेमे,पहिलेवाले सम्यक्त्वी आत्मार्थी होतेथे वो तो तत्वदृष्टि तरफ विचार करके सत्य बात ग्रहण करतेथे और अपनापक्ष छोडनेमें किसीप्रकारकीभी हानी नहीं समझतेथे. श्री गौमतस्वामि आदिगणधर महाराजोकी तरह तथा सिद्धसेनदिवाकर, हरिभद्रसूरिजीवगैरह उत्तमपुरुषोंकी तरह, और अभीके झूठे आभिमानी अंतर मिथ्यात्वी हठाग्रही होते हैं वो तो शास्त्रोकी बातको मनमे समझने परभी अभिमानसे सत्यबात प्रहणकरके अपना पक्ष छोड़नेमें बडीभारी हानी समझतेहैं, आनंदसागरजी शांतिविजयजीवगैरहोकीतरह (इसका खुलासा आगे लिखुं गा)औरशास्त्रोंके अभिप्रायविरुद्ध होकर व्यर्थही झूठी २कुयुक्तिये ल. गाते हैं, या विषयांतर करके सामनेवालेपर वा उसके समुदायपर विरोध भावको बढानेवाले आक्षेपकरने लगजाते हैं।और मुख्यमुद्देके विवादको छोड़कर निंदा ईर्षासें राग द्वेष करके विरोधभावसे अपने
को और दूसरोंकोभी कर्मबंधन कराने हेतुभूत बनतेहैं. मगर झूठे .आग्रहसे उत्सूत्र प्रकपणा करके कुयुक्तियोंसे भोले जीवोंको उन्मार्ग में गेरनेसे वा राग द्वेषसे विरोधभाव करनेसे संसार बढनेकामय नहीं रखते हैं, इसलिये अभीके आग्रहीजनोंकी मलीन बुद्धि कही . जाती है । इसीप्रकार पर्युषणासंबंधीभी यहग्रंथ वांचेबाद अब देख
नेमे आवेगा, कि-५० दिन प्रतिबद्ध पर्युषणाका विषयको छोडकर मास प्रतिबद्ध होली दिवाली आदिके विषयांतरमें या अंगतआक्षेप करने में कौन २ महाशय अपने अंतर आत्माके कैसे २ गुण प्रकाशित करेंगे, सो तत्त्व जन स्वयं देख लेवेगे, इसलिये यहांपर विशेष लिखनेकी कोई आवश्यकता नहीं है।
.४५- इस ग्रंथ संबंधी लेखकोंकों सूचना.
इसंग्रंथपर किसी तरहकाभी लेख लिखनेवाले महाशयोंको सू. चना करनेमें आती है, कि-जैसे मैंने इसग्रंथमें सुधोधिका-दीपिका. कीरणावली वगैरहके विवादवाले प्रत्येक लेखोंको पूरेपूरे लिखकर पीछे शास्त्रानुसार व युक्तिपूर्वक उसकी समीक्षा खुलासा करके बतलाया है. मगर विवादवाली एकभी बातको छोडी नहीं है. वैसे. ही इसग्रंथपर लेख लिखनेवाले आप लोगभी इसग्रंथके प्रत्येक बि.
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