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[ ३६ ] प्रावणादि मासोंकी शुद्धि होनेसे उन अधिक मासोंके समयमें देशदेशान्तरे आम्र वृक्षादिका फूलना, फलना और आमोंका उत्पत्ति होना प्रत्यक्ष देखने में और सुनने में आता है और किसी देश में नाघ, फाल्गुन मासमें तो क्या परंतु हरेक भासोंमें भी आम्र फूलते हैं और अधिक मासके बिना भी हरेक मासोंमें कणियर भी फूलता रहता है इसलिये शामत्रकार महाराजका अभिप्रायके विरुद्ध और कारण कार्य तथा आगे पीछेक सम्बन्ध की प्रस्ताविक बातको छोड़ करके अधूरा सम्बन्ध लेकर शब्दार्थ ग्रहण करनेसे तो वडेही अनर्थका कारण होजाता है, जैसे कि-श्रीसूयगडाज. जीमें वादियों के मत सम्बन्धकी बातको, श्रीरायप्रशेनीमें परदेशी राजाके सम्बन्धकी बातको श्री आवश्यकजीकी और श्रीउत्तराध्ययनजीकी व्याख्यायों में निहवोंके सम्बन्धकी बातको, और श्रीकल्पसूत्रकी व्याख्यायों में श्रीआदिजिने. खर भगवान्के वार्षिक पारणेके अवसरमें दोनं हाथोका विवादके सम्बन्धकी बातको इत्यादि पञ्चाङ्गीके अनेक शास्त्रों में बैंकड़ो जगह शब्दार्थ और होता है परन्तु शास्त्रा कार महाराजका अभिप्राय औरही होता है इसलिये उस जगहको व्याख्या लिखते पूर्वापरका सम्बन्ध रहित और शास्त्रकार महाराजके अभिप्राय विरुद्ध निःकेवल शब्दार्थको पकड़ करके अन्य प्रसङ्गकी अन्य प्रसङ्गमें अधूरी बातको लिखने वाला अनन्त संसारी मिथ्या दृष्टि निहूव कहा जावे, तैसेही श्रीआवश्यक नियुक्तिकार महाराज के अभिप्रायके विरुद्धार्थमैं शब्दार्थको पकड़ करके बिना सम्बन्धकी और अधूरी बात लिखके जो सातवें महाशयजीने बालजीवों
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