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चतुर्मासिकमपि सिद्धांते वर्वर्त्ति सत्यं परमधिकमासो ऽस्मा भिर्नगण्यमानोति एवं चेतर्हि अस्माभिरपि यदाधिकः श्रावण भाद्रपद वावर्द्धते तदा नगण्यते तेनाशीतिदिनानि पञ्चाशद्दिनान्येवेतीत्यादि ।
अब पं० हर्ष भूषणजी के ऊपरका लेखको तत्वज्ञ पुरुष निष्पक्षपात से विचारेंगेता प्रत्यक्ष पने उनके भ्रमजालका परदा खुल जावेगा क्योंकि युक्ति और आगम क्रमके बहाने उत्सून भाषणका संग्रह करके कुयुक्ति यांकी भ्रमजाल में बालजीबोंको गेरनेका कारण किया है तो तो प्रत्यक्ष दिखता है aira co दिने पर्युषणा करनेका किसी भी शास्त्र में नहीं कहा है परन्तु श्रावण भाद्रपदादि अधिक होनेसे पंचमासके १० पक्षोंके १५० दिनका अभिवर्द्धित चौमासा तो प्रत्यक्षपने अनुभव से देखने में आता है इसलिये निषेध नहीं हो सकता है और अधिक मासको गिनती में निषेध करके दूसरे श्रावण के ३० दिनांकी गिनतीमें छोड़कर ८० दिन के ५० दिन अपनी मतिकल्पनाते बनाते हैं से। मिल्केवल उत्सूत्र भाषण है क् कि शास्त्रानुसार तथा युक्तिपूर्वकसे ते ८० दिनके ५० दिन कदापि नहीं हो सकते हैं सो तो इस ग्रन्थको पढ़नेवाले स्वयं विचार लेवेंगे ।
और फिर आगे । ननु 'अभिवद्द्यंभि वीसा इयरेसु सatesमासेr' मिशीषभाष्ये इत्यत्राधिकमासोगणिताऽस्ति । इस तरहसे अधिक मासको गिनती सम्बन्धी पूर्वपक्ष उठाकर उसीका उत्तर में 'आसाढ़ पुरिणमाएपविठा' इत्यादि निशीथ पूर्णिका अधरा पाठसे अज्ञात पर्युषणाकी और 'वीस दिणेहिंकप्पो' इत्यादि बिनाही प्रसङ्गको विच्छेद
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