Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 554
________________ [ ४५० ] साता अपनी विद्वात्ताकी हासी कराने जैसा कियाहै क्योकि वहांता श्रीनन्दीश्वरध्वीपाधिकारे जिन चैत्योंकी व्याख्या करके वहां चौमासीमें तथा संवत्सरीमें और श्रीजिनेश्वर भगवान्के जन्मादि कल्याणकोंमें भवन पति बगैरह बहुत देवोंको अठाईउच्छव करनेका लिखाहै परन्तु वहां भाद्रपद कातो नाममात्र भी नहीं है सौ मूत्र वृत्ति सहित छपाहुवा श्रीजीवा भिगमजीके पृष्ठ ८४३ में खुलासा पूर्वक अधिकारहै इस लिये ऐसे ऐसे पाठोंको लिखके बाल जीवोंको भ्रममें गेरनेसे तो अपने कल्पित बातकी पुष्टि कदापि नहीं हो सकती है सो विवेकी पाठक गणभी स्वयं विचार सकते हैं। ___और श्रीकुलमंडन सूरिजी के उपरोक्त लेख के अनुसार ही धर्मसागरजीनेभी तस्करवृत्ति कर के धर्म धूर्ताईसे निजको तथा गच्छ कदाग्रही बालजीवों को दुर्लभबोधिका कारण करने के लिये 'तत्वतरंगिणो' ग्रन्थ का नाम रखके वासत्विक में 'कुयुक्तियोंकी भ्रमजाल' बनाकर उसी में पर्युषणा संबंधी मिथ्यात्वका कारणरूप जो लेख लिखा है जिसका निर्णय तथा 'प्रवचनपरिक्षा' नामक ग्रन्थ भी उत्सूत्र भाषणोंके संग्रहसे कुयुक्तियों करके पर्युषणा संबंधीजो लेख लिखा है जिसका निर्णय तो ऊपरके लेखको तथा इस ग्रन्थ को विवेक बुद्धिसे पढ़नेवाले तत्वज्ञ पुरुष स्वयं ही समझ लेवे गे:-- अब पाठकगणको मेरा इतमाही कहना है कि-श्रीजैन शास्त्रों में अधिक मासको कालचूलाकी जो उत्तम ओपमा देते हैं उसीके दिनोकी गिनती करने में आती है तथा लौकिक शास्त्रानु नार और प्रत्यक्ष पने बर्तावकी सत्ययुक्तियोंके अनुसार करके भी अधिकमासके दिनो की गिनती क. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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