________________ [ 452 ] उत्थापन करके उत्स भाषणोंसे कुयुक्तियों के संग्रह पूर्वक अधिकमासको कालचूला वगैरहके बहानेसे निषेधकरने संबंधी-कल्पकिरणावली तथा सुखबोधिकात्तिवगैरहके लेखों को हरवर्षे श्रीपर्युषणापर्व के दिनों में बांचते हैं जिसको गच्छकदा ग्रही पक्षपाती अज्ञचीव श्रद्धापूर्वक सत्यमानते हैं ऐसे उपदेशक तथा प्रोता श्रीजिनाजाके आराधक पंचांगीकी श्रद्धावाले सम्यक्त्वी आत्मार्थी हैं ऐसा कोइभी विवेकीतत्वज्ञ तो नही कहसकेगे। बोंकि श्रीअनंत तीर्थंकर गणधरादि महाराजांका प्रमाण कियाहुवा कालचलाकी श्रेष्ट ओपमा वाला अधिकमासको निषेधकरने वालों में प्रत्यक्षपने श्रीजिनजा का विराधकपना होनेसे मिथ्यात्वसिद्ध होताहे सो तत्वात स्वयं विचार सकते हैं / इसलिये मिथ्यात्वसे संसार में परिभ्रमण करने का भय करने वाले तथा श्रीजिनाज्ञामुजब वर्तने की इच्छा करने वाले विवेकियोंको तो श्रीजिनका विरुद्ध उपरोक्त कार्य करना तथा उसी मुजब श्रद्धा रखना उचित नही है किंतु श्रीजिनाशामुजब पर्युषणाके व्याख्यान सुनने वाले भव्यजीवोंके आगे अधिक मासकी गिनती करनेका शास्त्र प्रमाणपूर्वक सिद्धकरके दूसरे प्रावणमें वा प्रथम भाद्रपद में श्रीपर्यषणा पर्वका आराधन करना तथा दूसरोंसे करना सोही आत्महितकारीहै सो तत्वदृष्टिसे विचारना चाहियेःइति अधिक मासके निषेधक उत्सूत्र भाषी कुयुक्तियों करनेवाले सातवें महाशयजी वगैरहे।के पर्युषणा सम्बन्धि अन्न जीवोंको मिथ्यात्वमें गेरनेके लेखांकी संक्षिप्त समीक्षा समाप्ता // Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com