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दूसरे पंचम वर्षे १३ । १३ मासे और तीसरे वर्षे १२ मा वार्षिक कृत्य होनेका दिखाकर पांच वर्षोंके ६० नाम श्रीकु: लमंटन सूरिजी लिखते है साला श्रीअनंत तीर्थंकर गणधरादि महाराजों की आज्ञाको प्रत्यक्षपने उत्थापनकर के उत्सूत्र भाषण करनेवाले बनते हैं क्योंकि अभिवर्द्धितमें वीशदिने श्रावण में पर्यषणा करने से जैनशास्त्रानुसारता प्रथम चौथे वर्षे १३ । १३ मासे और दूसरे तोनरे पंचमें वर्षे १२ । १२ मासे वार्षिक कृत्य होने का बनता है और पांच वर्षोंके ६२ मास श्रीअनंत तीर्थंकर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञानुसार जैनशास्त्रों में प्रसिद्ध है ।
और मासवृद्धिसे तेरहमा सहोतेभी १२ मासके क्षामणे लिखते है सेrभी अज्ञानताका सूचक है क्योंकि मासवृद्धि होने से तेरहमास छवोशपक्ष के क्षामणे किये जाते है इसका निर्णय सातवे म० ले० समीक्षा में इसही ग्रन्थ के पृष्ठ ३६३ से ३१८ तक छपगया है सेा पढने से सब निर्णय होजावेगा ।
और जैनशास्त्रों में मुख्य करके एकबातकी व्याख्या करते है उसीकेही अनुसार यथोचित दूसरी बातोंके लिये भी समझा जाता है इसलिये जिन जिन शाखा में चंद्रसंवत्सर में ५० दिने तथा अभिवर्द्धित संवत्सरमें २० दिने ज्ञात पर्यु षणा कही सा यावत् कार्तिक तक खुलासा लिखा है जिसपर विवेक बुद्धिसे विचार किया जावेता जैसे चंद्रसंवत्सर में ५० दिन जहां पूरे होवे वहां स्वभावसेही भाद्रपद समजते हैं तैसेही अभिवर्द्धित संवत्सर में २० दिन जहां पूरे हेावे वहां भी स्वभाविक रीतिसे श्रावण समजना चाहिये । और चार मासके १२० दिनका वर्षा काल में ५० दिने पर्यावणा करने से
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