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[४६ ] हातको इस ग्रन्थके पढनेवाले सज्जन खयं विचार वंगे।
और अधिक मासको कालचला कहते हुए भी नपुंसक लिखते हैं सभी प्रीसमन्ततीर्थकर गणधरादि महारानों की आशातमा करनेके बरोबरहै तथाविवाहादि मुहूतनैमित्तिक संसारिककार्योंके लियेनी उपरमही हर्षभषषजीके लेखमंसूचना करने में आगई हैं। . और वीशदिनकी बात पर्युषणाके सिवाय और कार्यों में अधिकमासको प्रमाण करनेका नही दिखता है यह लिखना श्री श्रीकुटमंहनसूरिजी का प्रत्यक्ष मिथ्या है बोकि दिनों को पक्षोंकी मासकी गिनतीका कार्य में,चौमासके वर्षक युगके प्रमाणकी गिनतीका कार्य में, क्षामोंके कार्यमें, सामायिक प्रतिक्रमण पौषध देवपूजा उपवास शीलवतादि नियमांका प्रत्यास्थानों के गिनतीका कार्यो में चौमासी छमासी वर्षी तथा वीतस्थानकनीके और पर्युषणादि तप के दिनों की गिनतीके कार्यों में और भागनेोके योग वहनादि कार्यों में अधिक मासके दिनांकी गिनती को प्रमाण गिनने में मातीहै सो तो प्रत्यक्ष अनुभव की प्रसिद्ध बात है। और एकजगह अधिकमासको कालचूलालिखते हैं दूसरी जगह नपुंसक लिखते हैं तथा एकजगह श्रीबृहत्कल्पवर्णि श्रीनिशीपचाणिकेपाठोंसे 'धेव' निश्चय अधिकमासको गिनतोकरने का लिखते हैं दूसरी जगह नही गिनने का लिखते हैं इसतरहसे बालजीवों को भ्रममें गेरनेवाले पूर्वापरविरोधि (विसंवादी) लेखलिखते कुछभीविचार न किया सोभी कलयुगी विद्वत्ता का नमूना है।
और आगे फिरभी जो जैन पंचाङ्गानुसार प्राचीन काउमें अभिवर्द्धितसम्बस्सरमें वीरादिमे अर्थात् प्रावणशदी
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