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[ ४४५ ] . और अधिक तथा क्षय संज्ञा वाले मास समुच्चयके व्यव. हार में तो संयोगिक मासके सामिल गिने जाते है परंतु भिना मिन्त्र व्यवहारमैं तो दोनों मासों के दिनों की गिनती जदी जादी करने में आतीहै से अधिक मास संबधी तो उपरमें तथा इसग्रन्थों लिखने में आगयाहै परंतु क्षयमास संबंधी थोड़ा सा लिखदिखाताहूं कि जब कार्तिक मासका क्षय होवे तब उसीके दिनोंकी गिमतीपूर्वक ओलियोंकी आश्विन पर्णिमा से १५ दिने दीवाली तथा श्रीवोरप्रभु के निर्वाण कल्याणक तथा २० वे दिन ज्ञानपंचमी और ३० वें दिन कार्तिक पूर्णिमा सो चौमासा पूरा होनेसे मुनि विहार होताहे इस तरहसे मार्गशीर्ष पौषका भी क्षय होवे तब मौन एकादशी, पौष दशमी वगैरह पर्व तपा और श्रोजिनेश्वर भगवान् के जन्मादि कल्याणकांकी तपश्चर्यादि कार्य करने में आते हैं। ___ अब श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञाके आराधक सज्जन पुरुषों को न्याय दृष्टि से विचार करना चाहिये कि-क्षयमाम के दिनोंमें दीवाली वगैरह वार्षिक वर्ष किये जातेहै उसी मुजबही श्रीतपगच्छ के सबी महाशय करते हैं इसलिये क्षय मासके दिनों की गिमती निषेधकरनेकातो किसीभी महाशय जीने कुछभी परिश्रम म किया। और पर्युषणामें तथा पर्यु - षणासंबंधी मासिक डेढमासिक तपश्चर्यादि कार्योंमें अधिक मासके दिनों की गिनती प्रत्यक्षपने करते हुवेभी दूसरे गच्छ वालो से द्वेषबुद्धि रखके अधिक मासकी गिमती निषेध करनेके लिये उत्सूत्र भाषणेसे कुयुक्तियोंका संग्रह करनेका श्रीतपगच्छ के अनेक महाशयोंने खूबही परिश्रम कियाई सौ तो प्रत्यक्षपने स्वगच्छाग्रहके इठवाद का नमूनाहे सो इस
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