Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 547
________________ [ ३] संबंधी श्रीकुलमंडनमूरिजीका लिखना प्रत्यक्ष मिथ्या है। और जैन पंचांगानुसार पौष तथा भाषाढ की पद्धि होती थी तबझी उसी के दिनोंको पर्युषणादि सब धर्म कार्यों में गिनती करतेथे सातो उपरमेही श्रीवहत्कल्पचर्णि श्रीनि. शीपचणिके पाठसे प्रत्यक्षदिखता है परन्तु वर्तमानकाले जैन पंचांग के अभावसे लौकिक पंचांगानुसार वर्ताव करने में आताहे उसी में चैत्रादि मासेकी वृद्धि होतीहै उसी के ३० दिनों में दुनियांका सब व्यवहार तथा धर्म व्यवहार प्रत्यक्षयनेहोताहै इसलिये उसीके दिनांकी गिनती निषे. ध नहीं होसकती है तथापि जो संक्रांति रहित मलमास केरोसे अधिक मासके दिनांकी गिनती निषेध करते? सो अपनी पूर्ण अज्ञानताले भोले जीवोंको गकदाग्रह में गेरनेका कार्य करते हैं क्योंकि संक्रांति रहित अधिक मास को मलमास कहा है तैसेही दो संक्रांति वाले क्षय मासको श्री मलमास कहा है परन्तु अधिक मासके तथा क्षय मास के दिनोंकी गिनती बरोबर करते हैं। तथाहि कमलाकर भट विरचित (लौकिक धर्मशास्त्र) निर्णय सिंधौमामा ग्रंथे । तत्र संक्षेपतःकालः षोढा-अब्दोयनमृतुर्मासः पक्षदिबस इति ॥ पुनस्तत्र वक्षमाणः प्रावणादि द्वादश मासै मतदई । म उमासेतु अति षष्ठिदिनात्मकः एको मासो द्वादश मासत्वमविरुद्धमिति ॥ तपाच व्यासः षष्ट्यातु दिवसेमांसःकथितो बादेरायणैः-इति ॥ अप मलमास क्षयमास निर्णय । अथ मल मासः तत्रैकमात्र संक्रांति रहितःसितादिश्चांदी मासा मल मासः एकमात्र संक्रांति राहित्यमसंक्रातित्व संक्राति द्वयत्वमच अप्रतिति । मल मासा द्वेधा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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