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(४३५ ) एक युगके १८३० दिनोंके ५४९०० ( चौपन हजार नौ सौ ) मूहोंकी व्याख्या श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञाप्तिसूत्रके अनुसार श्रीवि. नय विजयजी लोकप्रकाशमैं स्वयं लिखते हैं तैसेही श्रीधर्मसागरजीने भी श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञप्तिकी वृत्तिमें अपर मजबही पांचोंके दो अधिकमासों के दिनोंकी तथा पक्षोंकी और मुहूतों की गिनती पूर्वक एक युगके १८३० दिनोंके ५४९०० मुहूर्त खुलासा पूर्वक लिखे हैं। तथापि बडेही खेदकी बात हैकि इन दोनों महाथयोंने गच्छकदाग्रहका पक्ष करके उत्सूत्रभाषणसे संसार वृद्धिका भय न रक्खा और बाउजीवोंको श्रीजिनाज्ञाकी सत्य बात परसे श्रद्धाभ्रष्ट करने के लिये श्री. रूपसूत्रको कल्पकिरणावलीवत्तिम तथा मुखबोधिका कृत्तिमें काल चलाके बहानेसे दोनों अधिक मासके ६० दिनोंकी गिनती निषेध करके अपने स्वहस्ये एक युगके दो अधिक भासद दिनोंकी मुहूतौकी गिनती पूर्वक १८३० दिनांके ५४९०० मुर्तीको श्रीतीर्थकर गणधर महाराजको आज्ञानुसार लिखे हैं उसीका अङ्गकारक दो अधिक मासके ६० दिनांके अनुमान १८०० मुहूतौके कालका व्यतीत होना प्रत्यक्ष होते भी उसीकी गिनती में से सर्वथा उड़ादेकर श्रीतीर्थंकरगण. धर महाराजके कपनका प्रमाण अङ्ग डालने वाले लेख लिखते पूर्वापरका विवेकबुद्विसे कुछ भी विचार न किया
और उत्सूत्र भाषणोंका संग्रह करके कुयुक्तियोंसे असामीजीवोंको भ्रमाने का कारण कियाइसलिये इन दोनों महाशयोंकी धर्मधूर्ताईमें कुछ कम होवे तो न्यायदृष्टिवाले विवेकीसज्जन स्वयं विचार लेवेंगे।
और इन दोनों महाशयोंके अधिक मासके निषेध
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