Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 537
________________ [ ४३ ] सब कोई आत्मार्थि जन अधिक मासकी गिनती प्रमाण करकेही पर्युषणा करते हैं और आगे भी ऐसेही करेंगे परन्तु शासननायक श्रीवर्द्धमान स्वामीके मोक्ष पधारे बाद अनुमान एक हजार वर्ष व्यतीत हुए पीछे उत्सूत्र भाषणों में आगेवान गच्छ कदाग्रही शिथिलाचारी धर्मधूर्त जैनामास पाखयही चैत्य वासियोंने पञ्चाङ्गी प्रमाणपूर्वक प्रत्यक्षसिद्ध होते भी कितनीही सत्य बातेको निषेध करके अपनी मति कल्पनासे उत्सूत्र भाषणरूप कुयुक्तियों करके श्रीजिनाज्ञाविरुद्ध कल्पित बातोंकी प्ररूपणा करी और अधिसंवादी श्रीजैन शासनमें वि संवादके मिथ्यात्वको बढ़ाया था जिसमें शास्त्रानुसार तपा युक्ति पूर्वक अधिक मासकी गिनती तथा आषाढ़ चौमासीसे दिने श्रीपर्युषणा पर्वका माराधन करनेका प्रत्यक्ष दिखते हुए भी लौकिक पञ्चाङ्गम भासद्धि दो प्रावणादि होनेसे प्रत्यक्ष शास्त्रोके तथा युक्तिके भी विरुद्ध होकर यावत् ८० दिने श्रीप\षका पर्वका माराधन करनेका सर करके श्रीजिनामाका उत्थापनसे मिथ्यात्व फैला था और निर्दूषण बनने के लिये अधिक मासकी गिनती निषेध करके उत्सत्र भाषणोंकी कुयुक्तियों से अज्ञानीजीवोंको अपने मिथ्यात्वको भ्रमजालम फसाने के लिये धर्मधूर्ताई करने में कुछ कम नहीं किया था सो तो श्रीसंघपहककोव्याख्याओंके भवलोकनकरनेसे अच्छी तरहसे मालूम हो सकता। और कितनेही भारी कमें प्राणी तो उपरोक मिथ्यास्वकी भ्रमजाल में फसकर अन्धपरम्परासे उसीकाही पुष्ट करते हुए बाल जीवोंको अपने फंदमें फसाते रहते थे उसी मिथ्यात्वकी अन्धपरम्पराही अनुसार पं० श्रीहर्षभूषणजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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